सोरेन को नहीं मिली अंतरिम जमानत, सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ 21 को करेगी सुनवाई
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में तीन माह से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन पीठ 21 मई को सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की पीठ ने पूर्व मुख्यमंत्री की याचिका पर संबंधित पक्षों की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को अगली सुनवाई से पहले सोमवार तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने इससे पहले पीठ के समक्ष जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय देने की गुहार लगाई थी।
न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ श्री सोरेन का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के शीघ्र सुनवाई करने के विभिन्न दलीलों के जरिए बार-बार अनुरोध करने पर 13 मई को ईडी को नोटिस जारी किया था और 17 मई को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। पीठ पिछली तारीख को ही इस मामले को गर्मी की छुट्टियों के दौरान या जुलाई में विचार के लिए तय करना चाहती थी, लेकिन श्री सिब्बल के अनुरोध पर 17 मई की तारीख तय की थी। उन्होंने तब तारीखों की सूची का भी हवाला दिया था, क्योंकि शीर्ष अदालत ने श्री सोरेन को अपनी गिरफ्तारी और मामले में हुई देरी के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था, जिससे चल रहे आम चुनावों के दौरान श्री सोरेन के अधिकार कथित तौर पर प्रभावित हुए थे।
श्री सिब्बल ने अपनी दलील के समर्थन में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को दी गई अंतरिम जमानत और याचिका की अग्रिम प्रति प्रवर्तन निदेशालय के अधिवक्ता को छह मई को देने का हवाला दिया था। पीठ के 20 मई को सुनवाई करने के संकेत पर श्री सिब्बल ने कहा कि यह ‘बहुत बड़ा अन्याय’ होगा अगर 17 मई को मामले की सुनवाई नहीं हो सकी तो बेहतर होगा कि अदालत इसे खारिज कर दे, क्योंकि तब तक राज्य में लोकसभा चुनाव खत्म हो जाएंगे। उन्होंने कहा था कि सोरेन का मामला अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत के आदेश के दायरे में आता है, जिसमें उन्हें चुनाव के दौरान प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया था।
झारखंड उच्च न्यायालय ने श्री सोरेन की अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका तीन मई को खारिज कर दी थी। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी ने 31 जनवरी 2024 को श्री सोरेन को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के मद्देनजर उसी दिन उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था। उन्होंने तब राहत की गुहार लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली थी। उनकी याचिका दो फरवरी को खारिज कर दी गई थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने तब (दो फरवरी को) याचिका खारिज करते हुए श्री सोरेन को अपनी जमानत के लिए झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा था।
पूर्व मुख्यमंत्री को झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में ईडी ने 31 जनवरी 2024 को एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद गिरफ्तार किया था। राज्य की एक विशेष अदालत ने एक फरवरी को उन्हें एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, जिसकी अवधि सामय-समय पर बढ़ाई गई। शीर्ष अदालत की पीठ ने दो फरवरी को याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वरिष्ठ श्री सिब्बल से पूछा था, “आपको उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाना चाहिए? अदालतें सभी के लिए खुली हैं। विशेष पीठ वकील से यह भी कहा था, “उच्च न्यायालय भी संवैधानिक अदालतें हैं। यदि हम एक व्यक्ति को अनुमति देते हैं तो हमें ऐसी अनुमति सभी को देनी होगी। श्री सोरेन की ओर से वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने भी दलील दी थी। उन्होंने दलील देते हुए कहा था कि शीर्ष अदालत को मामले पर विचार करने का समवर्ती क्षेत्राधिकार मिला हुआ है। वहीं, श्री सिब्बल ने कहा था कि यह अदालत हमेशा अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकती है। पीठ पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा था और उसने श्री सोरेन की याचिका खारिज कर दी थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी याचिका में गुहार लगाते हुए अपनी गिरफ्तारी को अनुचित, मनमाना और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन घोषित करने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया था।