ख़ुशी और इज़हार पर कोरोना की बंदिश मोहर्रम व गणेश चतुर्थी जुलूस पर पाबंदी से मायूस हैं लोग अपने-अपने घरों में मातम और पूजा पाठ

ए अहमद सौदागर
लखनऊ।
मोहर्रम – ए- गमे ग़म। इस बार का मोहर्रम हमेशा से अलग है। कोरोनावायरस का कहर ताबड़तोड़ मौते, लगभग पांच महीने से हम इस ग़म में डूबे हैं।इसी ग़म के बीच में अब आया है मोहर्रम।
Jamnagar sikka mohram tajiya .9.30.2017 - YouTube
कहावत है ग़म का इजहार करने से दिल का बोझ हल्का होता है। हम अपने ग़म का इजहार नहीं कर पा रहे हैं और कोरोना ने दहशत दिलों- दिमाग में अपनी जड़ें मजबूत करती जा रही है।
हंसी ठिठोली तो कब की छिन गई है। कभी फला की मौत तो कभी फला की मौत सुनकर हम अपनी मौत का इंतजार करते हुए ग़म में डूबे हैं।
मोहर्रम में मातम करके पूर्वजों प्रति अपनी श्रद्धा का इजहार करने की सदियों पुरानी परम्परा है।
छूरी से खुद को ज़ख्मी करते हुए विशाल जुलूस, अंगारों पर चलना, कांच अपने तन फोड़कर ज़ख्मी करना ऐसे रिवाज का अजादार और ताजियादार हर साल पालन करते रहे हैं।
इस बार मास्क के बगैर घर से निकलने पर चालान, सोशल डिस्टैसिग का कड़ाई से अनुपालन, भीड़ कर सकती है। ऐसे में मोहर्रम का मातम एवं नौहा ख्वानी कैसे होगा।
क़त्ल की रात पर आबू में निकले ताजिये ...
सदियों पुरानी परम्परा पर कोरोनावायरस भारी पड़ेगा क्या।
धर्म गुरुओं ने घर में मातम करने की  सलाह भी दी है, लेकिन ग़म का इजहार करने वाले अजादार एवं ताजियदार विशाल जुलूस निकालकर मातम व नौहा ख्वानी के लिए फड़फड़ा रहे हैं।
पेशोपेश में हैं कि सदियों पुरानी परम्परा का निर्वाहन करें या फिर अपनी और परिवार की जान बचाने के लिए हालात से समझौता किया जाए।
वक्त का तकाजा है कि अब हमें न सिर्फ खुशी और ग़म का त्योहार, बल्कि जीने के सलीके पर भी नए सिरे से विचार करना होगा।
गणेश चतुर्थी के पर्व पर एक नजर,
इसी दरम्यान गणेश चतुर्थी भी है। इस त्योहार को भी पंडाल सजाकर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है।
बड़े जुलूस गणेश जी की प्रतिमा को लेकर अबीर-गुलाल उड़ाते हुए जयकारों के साथ विसर्जन के लिए ले जाते रहे हैं।
इस बार वह भी मायूस हैं। प्रशासन ने इन्हें भी अनुमति नहीं दी है।
कोरोनावायरस ने किसी एक धर्म को आहत नहीं किया, बल्कि सभी धर्मों के मानने वालों को नए माहौल में जीने के लिए तैयारी का संदेश दिया है।
हाथ मिलाने और गले मिलने का रिवाज़ लगभग खत्म हो चला है। अब हर कोई दूर ही नमस्कार और सलाम करने लगा है।
जिसे कभी बुरा माना जाता था लेकिन आज लोग उसे अपनाने लगे हैं। ऐसे माहौल में नीरज जी की बहुचर्चित कविता अब मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जहां इंसान को इंसान बनाया जाए। प्रासंगिक है।अब इंसानियत के धर्म पे विचार करना होगा।

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