फ्री बिजली का वादा पावर काॅर्पोरेशन की मुश्किलों में करेगा इजाफा

लखनऊ, 

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों का मुफ्त बिजली देने का वादा राज्य में करीब 95 हजार करोड़ रुपये के घाटे में चल रहे पावर कार्पोरेशन की मुश्किलों में इजाफा कर सकता है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी (आप), समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस प्रदेश की जनता से मुफ्त बिजली का वादा कर चुकी है वहीं सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) रविवार को संभवत: अपने संकल्प पत्र में इस दिशा में महत्वपूर्ण एलान कर सकती है। वास्तव में उत्तर प्रदेश का ऊर्जा क्षेत्र बहुत विशाल है। यहां तीन करोड़ उपभोक्ताओं में दो करोड़ 43 लाख ग्राहक 300 यूनिट बिजली की खपत करने के दायरे में आते हैं। एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि कोई भी राजनीतिक दल अपने लोक लुभावन वादों में फ्री बिजली की सीमा और शर्तों के तकनीकी पहलू पर बात करना नहीं चाहता। मसलन यदि 300 यूनिट बिजली फ्री है और किसी उपभोक्ता का बिजली का बिल 301 यूनिट का आता है तो क्या उसे सिर्फ एक यूनिट का भुगतान करना होगा या फिर उसे 301 यूनिट के पैसे चुकाने होंगे। बिजली क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि तीन करोड़ उपभोक्ताओं वाले राज्य उत्तर प्रदेश में मुफ्त बिजली की बजाय सस्ती बिजली का विकल्प ज्यादा तर्कसंगत होगा। इससे न सिर्फ ऊर्जा की बर्बादी पर अंकुश लगता बल्कि सरकारी खजाने पर बोझ अपेक्षाकृत कम होगा। यहां दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश महंगी दरों में बिजली मुहैया कराने वाले देश के पहले पांच राज्यों में शामिल है। राज्य में 300 यूनिट तक की खपत करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या करीब दो करोड़ 43 लाख है जबकि ज्यादातर पार्टियां घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट फ्री बिजली का लालीपाॅप दे रही है।


प्रदेश में राज्य सलाहकार समिति समेत ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी कई कानूनी समितियों के सदस्य अवधेश वर्मा ने शनिवार को यूनीवार्ता को बताया कि उत्तर प्रदेश का पावर सेक्टर गंभीर आर्थिक संकट जूझ रहा है। ऊर्जा विभाग करीब 95 हजार करोड़ रूपये के घाटे में है। प्रदेश में तीन करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। राजनीतिक दल सरकार बनाने की दशा में यदि 300 यूनिट फ्री बिजली के वादे को अमल में लाते है तो इसका लाभ दो करोड़ 43 लाख उपभोक्ताओं को मिलना तय है जो हर महीने 300 यूनिट तक बिजली उपभोग के दायरे में आते है। उन्होंने कहा कि सरकार अपने बिजली उपभोक्ताओं को वर्तमान में हर साल 11 हजार करोड़ रूपये की सब्सिडी देती है। यदि घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जायेगी और किसानों के बिजली के बिल में 50 फीसदी तक की कमी आयेगी तो सरकारी खजाने में हर साल करीब 23 हजार 186 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। इस लिहाज से सरकारी रियायत बढ़ कर 34 हजार 182 करोड़ सालाना हो जायेगी। अब अगर इसके तकनीकी पहलू पर गौर करें तो 100 यूनिट तक बिजली का उपभोग करने वाले करीब 90 लाख उपभोक्ता है जिनकी मांग पूरी करने के लिये करीब 4077 मिलियन यूनिट बिजली की जरूरत होती है। वर्मा ने कहा, “ये उपभोक्ता 300 यूनिट फ्री बिजली का लाभ उठाने के चक्कर में ऊर्जा की बर्बादी कर सकते हैं जिसका सीधा असर न सिर्फ सरकारी खजाने पर पड़ेगा बल्कि सिस्टम पर भार बढ़ने से ट्रांसफार्मर की क्षमता बढ़ानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बिजली सस्ती करना बहुत आसान है। सस्ती करके प्रदेश की जनता को लंबे समय तक लाभ दिया जा सकता है लेकिन फ्री करके ऊर्जा विभाग और जर्जर हालत में पहुंच जायेगा। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि उन्होने बिजली की दरे सस्ती करने को लेकर उप्र नियामक आयोग में कई याचिकायें दाखिल की है जिसमें पावर कारपोरेशन जवाब नहीं दे रहा है। वह पहले की सपा और मौजूदा भाजपा की सरकारों से बिजली दरों में रियायत देने की मांग कर चुके है मगर अब तक इस दिशा में कोई कदम नही उठाया गया है।


उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश हर साल विभिन्न श्रोतों से एक लाख आठ हजार मिलियन यूनिट प्रदेश की मांग पूरी करने के लिये खरीदता है जिसके एवज में उसे करीब 55 हजार करोड़ रूपये का भुगतान करना होता है। सपा, बसपा और भाजपा के नये बिजली संयंत्रों को लगाने के दावों को बेबुनियाद बताते हुये उन्होंने कहा कि प्रदेश में तो क्या देश में बिजली की कोई कमी नहीं है। यह देखते हुये नियामक आयोग ने प्रदेश में 2023 तक पीपीए पर रोक लगा दी है। मगर सवाल यह उठता है कि सस्ती बिजली कहां से आये। पूरे देश में बिजली खरीद के एवज में अग्रिम भुगतान करना जरूरी हो गया है। ऐसे में मुफ्त बिजली करने पर अग्रिम भुगतान के लिये रकम जुटाना और जटिल हो जायेगा। इस लिहाज से सस्ती बिजली का उपाय ढूढा जा सकता है मगर फ्री बिजली में घाटा लगातार बढ़ना तय है जिसे लंबे समय तक नहीं झेला जा सकता। उन्होने कहा कि फ्री बिजली का फार्मूला लेकर आयी आम आदमी पार्टी को अच्छी तरह पता है कि दिल्ली में सिर्फ 30 लाख उपभोक्ता इसका लाभ लेता है जबकि वह बिजली की प्रति उपभोक्ता सालाना खपत 1500 यूनिट के करीब है जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रति व्यक्ति 628 यूनिट है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में मुफ्त बिजली का लाभ लेने वालों की संख्या दो करोड 43 लाख है। पड़ोसी राज्य उत्तराखंड जहां सिर्फ दस लाख उपभोक्ता है, वहां 100-200 यूनिट बिजली फ्री करने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा मगर उत्तर प्रदेश में इसका असर देखने को मिलेगा। कुछ दल तो कह रहे हैं कि वे बिजली आपूर्ति के दौरान होने वाली बिजली की चोरी (लाइन लाॅस) खत्म करके फ्री बिजली से होने वाले घाटे की भरपाई कर लेंगे। यहां गौर करने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां बिजली दरें 11.08 फीसदी लाइन लाॅस पर तय होती हैं। जबकि, देश में आठ फीसदी से कम पर बिजली दरें तय ही नहीं होती। प्रदेश में बिजली चोरी का खामियाजा उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता। ऐसे में लाइन लाॅस के एवज में तीन फीसदी से ज्यादा की भरपाई नहीं की जा सकती। इसके अलावा महंगी बिजली खरीद पर प्रतिबंध लगाकर और अन्य उपायों से भी अधिकतम 4000 करोड़ रूपये ही बचाये जा सकते हैं।

गौरतलब है कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में बिना बिजली मीटर वाले (अनमीटर्ड) घरेलू उपभाेक्ता से 500 रुपये प्रति किलोवाट की दर से भुगतान लिया जाता है। जबकि, ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं से तीन से छह रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान लिया जाता है। शहरी घरेलू उपभोक्ता तीन से सात रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली का बिल भरता है। इसके अलावा उससे 110 रुपये प्रति किलोवाट ‘फिक्सड चार्ज’ लिया जाता है। वहीं, ग्रामीण उपभोक्ता 90 रुपये प्रति किलोवाट फिक्सड चार्ज देता है। इसके अलावा किसानों को ट्यूबबेल के लिये 170 रुपये प्रति हार्सपावर की दर से भुगतान करना होता है। गांव में मीटर से बिजली का उपभोग करने वाले किसान दो रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली का बिल भरते हैं।

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