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उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा को 30 वर्ष कैद में बदला

नयी दिल्ली, 

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सात साल की बच्ची से बलात्कार और उसकी हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाने वाले उत्तर प्रदेश के एक शख्स में सुधार की संभावना के मद्देनजर उसकी सजा को 30 वर्ष की कैद में बदल दिया। न्यायमूर्ति ए. एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने अपीलकर्ता पप्पू के पूर्व में कोई अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं पाए जाने समेत कुछ अन्य के तथ्यों पर गौर करते हुए सशर्त उसकी सजा को उम्र कैद में बदल दिया। पीठ ने याचिकाकर्ता को 30 वर्षों तक जेल की सजा काटने की शर्त के साथ मौत की सजा को बदलने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने सजा की प्रकृति बदलते समय याचिकाकर्ता की इस दलील पर भी गौर किया कि अपराध के समय यानी 2015 में उसकी उम्र लगभग 34 वर्ष थी। इसके अलावा पीठ ने याचिकाकर्ता के परिवार में उसकी पत्नी, बच्चे और वृद्ध पिता की मौजूदगी को उसमे सुधार होने की संभावना का आभार माना।


पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता में सुधार की संभावना के कई आधार आधार हैंं। विशेष रूप से उसका पूर्व का इतिहास एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि, जेल के अंदर संतोषजनक व्यवहार के कारण सजा को आजीवन कारावास में बदलने का मामला बनता है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस मामले को ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ श्रेणी का मानना और इस जुर्म के लिए मौत की सजा देना उचित नहीं होगा। दोषी व्यक्ति ने लीची खिलाने के बहाने मासूम के साथ न केवल बलात्कार किया, बल्कि उसने की हत्या भी की और उसके शव को एक किलोमीटर से अधिक घसीटने के बाद नदी किनारे कूड़े के ढेर में फेंक दिया था। पीठ ने निचली अदालत (कुशीनगर उत्तर प्रदेश) और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दोषी पाए जाने के आधार को न्याय सम्मत करार दिया।

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