व्यापार को लेकर सकारात्मक सोच विकसित करने की ज़रूरत: सिसोदिया

नयी दिल्ली,

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि देश में व्यापार को लेकर लोगों को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। श्री सिसोदिया ने आज कहा कि 75 सालों में देश का निर्यात 1.7 अरब डॉलर से बढ़कर 300 अरब डॉलर ही पहुंचा है और इसके लिए हमारी मानसिकता तथा तंत्र जिम्मेदार है| एक्सपोर्ट इतना बढ़ा इसके लिए व्यापारियों को सलाम है, वर्ना सिस्टम की उदासीनता के साथ ये भी संभव नहीं था| देश का सिस्टम व्यापार को लेकर इतना उदासीन है कि जब देश में पहली बार कंप्यूटर बना तो उसके निर्यात के लिए कानून में 5-6 साल तक कानून में कोई बदलाव नहीं किया गया और कंप्यूटर को 5-6 साल तक टाइपराइटर के रूप में निर्यात करना पड़ा। श्री सिसोदिया और उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन ने दिल्ली में निर्यात के अवसरों और उत्पादन में सुधार लाने के विषय पर मंगलवार को व्यापारियों के साथ चर्चा की| इस अवसर पर उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि दिल्ली में न तो अवसरों की कमी है और न ही जगह की कमी है| लोग दिल्ली में उद्योग-धंधे स्थापित करना चाहते है लेकिन न तो डीडीए उन्हें जमीन देती है और न ही काम करने देती है| साथ ही व्यापार को बढ़ाने में सहयोग करने के बजाय उसमे रोड़ा अटकाती है| ये उद्योग-धंधों के विकास में एक बड़ी बाधा है|

श्री सिसोदिया ने कहा कि सिस्टम में नवाचार को लेकर इतनी उदासीनता है कि देश में कंप्यूटर को कंप्यूटर के नाम पर निर्यात करने में में 5-6 साल लग गए| उससे पहले सिस्टम में कंप्यूटर को टाइपराइटर की श्रेणी में रखा जाता था| उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी के 75वें साल में आयोजित वाणिज्य उत्सव में हमें ये सोचने की ज़रूरत है कि ऐसी क्या कमी रह गई जिससे हम निर्यात के मामले में अबतक 300 बिलियन डॉलर तक ही पहुँच पाए है और यदि व्यापार तथा एक्सपोर्ट को आगे बढ़ाकर लंदन, सिंगापुर के स्तर तक पहुँचाना है तो उसके लिए भविष्य में हमारा एप्रोच क्या होगा| उन्होंने व्यापारियों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में भविष्य में होने वाला एक्सपोर्ट को किसी डेटा के साथ नहीं समझा जा सकता| असल हकीकत इससे समझा जा सकता है कि आज आई.आई.टी, डीटीयू जैसे बड़े-बड़े संस्थानों या फिर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से जब ये पूछा जाता है कि आप में से कितने लोग नौकरी करना चाहते है तो 99.99% बच्चे एक स्वर में कहते है की उन्हें नौकरी करनी है|


उपमुख्यमंत्री ने कहा कि हम अपने दिल को खुश करने के लिए डेटा में कितना भी बदलाव कर ले, लेकिन ये हकीकत है कि जिस देश के शिक्षा प्रणाली का डिज़ाइन ऐसा है जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी को नौकरी करने का सपना दिखाया जाता हो, उस देश का निर्यात नहीं बढ़ सकता| जब हमारे संस्थानों से 99 प्रतिशत बच्चे नौकरी पाने का सपना लेकर निकलते है तो भविष्य में हमें अपने देश का नाम वर्ल्ड ट्रेड मैप और एक्सपोर्ट मैप पर ढूँढना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि जब देश में केवल नौकरी ढूंढने वाले ही होंगे तो कंपनी बनाने वाले कहां से आयेंगे| जब युवाओं को कंपनी बनाने सा सपना देखना ही नहीं सिखाया जाता तो एक्सपोर्ट करने वाले लोग कहां से आयेंगे| उन्होंने आगे कहा कि हमें देश में व्यापार को लेकर सोच बदलनी होगी| उन्होंने जीएसटी ड्राफ्टिंग कमिटी के सदस्य के रूप में अपने अनुभवों पर बात करते हुए कहा कि हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर या व्यापार को लेकर अन्य कानून व्यापारियों को फेसिलिटेट करने के बजाय ये सोचकर बनाए जाते है कि व्यापारी चोरी कर रहा है| ऐसी स्थिति में कोई परिजन क्यों चाहेगा की उनके बच्चे व्यापार करे| वे यही चाहेंगे कि उनके बच्चे कोई बढ़िया नौकरी करें| हमें इस मानसिकता को बदलनी होगी और जमीनी हकीकत पर ध्यान देना होगा|

श्री सिसोदिया ने अपील करते हुए कहा कि हम सभी को एक सपने के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है| आज देश के बेहतरीन संस्थानों में पढ़ने वाला बच्चा भी ये सोचता है कि उसे अमेरिका, यूरोप, जापान की किसी कंपनी में नौकरी मिल जाए| इस सोच को बदलकर हमें इतनी मेहनत करनी है कि अमेरिका, यूरोप, जापान के बच्चे ये सपना देखन लगे कि उन्हें भारत के किसी शहर में नौकरी करनी है| जिस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था उस देश के लिए 300 बिलियन डॉलर कुछ नहीं है| हमें पीछे न देखकर लगातार आगे बढ़ते रहने की ज़रूरत है| तो वो दिन दूर नहीं जब ये सपना पूरा होगा और इसकी इबारत हमारे स्कूलों-कॉलेजों से रखी जाएगी| इस अवसर पर उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि दिल्ली देश का दिल है। निर्यात के मामले में, दिल्ली न केवल दुनिया को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और सेवाएं दी हैं, बल्कि दुनियाभर में काम करने वाली सबसे कुशल मैन-पावर भी दी है। ज्यादातर बाहर काम करने वाले भारतीय डॉक्टर और इंजीनियर दिल्लीवासी हैं। यह एक राज्य के रूप में दिल्ली की क्षमता के बारे में बहुत कुछ बताता है। दिल्ली में बहुत क्षमता है। इसका अंदाजा हम इससे लगा सकते हैं कि दिल्ली 10 बिलियन डॉलर का निर्यात कर रहा है। दिल्ली दुनिया का प्रशिक्षित मैनपावर का सबसे बड़ा हब है। अंत में उद्योग मंत्री ने कहा कि सरकार को एक इनेबलर का काम करना चाहिए और अनावश्यक नियम कानूनों को खत्म करना चाहिए ताकि व्यापार को बढ़ावा मिले। उन्होंने कहा कि दिल्ली में न तो अवसरों की कमी है और न ही जगह की कमी है| लोग दिल्ली में उद्योग-धंधे स्थापित करना चाहते है लेकिन न तो डीडीए उन्हें जमीन देती है और न ही काम करने देती है| साथ ही व्यापर को बढ़ाने में सहयोग करने के बजाय उसमे रोड़ा अटकाती है| ये उद्योग-धंधों के विकास में एक बड़ी बाधा है| दिल्ली सरकार राजधानी में उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हर मुमकिन प्रयास करेगी और व्यापार की सुगमता को बनाएगी।

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