भारतीय भाषाओं की नई शब्दावली बदलते समय के अनुकूल होनी चाहिए: नायडू
नयी दिल्ली,
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं की नई शब्दावली बदलते समय के अनुकूल होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने रविवार को अमेरिका के वांगुरी फाउंडेशन की 100वीं पुस्तक ‘सातवां प्रपंच साहित्य सदासु सभा विशेष संचिका’ का ऑनलाइन लोकार्पण करते हुए कहा कि इंटरनेट और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने भाषाओं के संरक्षण और विकास के नए अवसर प्रदान किए हैं। उपराष्ट्रपति ने इन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी उपयोग करने का आह्वान किया और कहा कि जिस दिन हमारी भाषा को भुला दिया जाएगा उस दिन हमारी संस्कृति भी विलुप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य को युवाओं के करीब लाया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने तेलुगू भाषा के लिए काम करने वाले संगठनों से तेलुगू की समृद्ध साहित्यिक संपदा को सभी के लिए उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया। पारंपरिक शब्दावली को सभी के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए, श्री नायडू ने कहा कि मौजूदा शब्दों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना और बदलते चलन के अनुरूप नए तेलुगू शब्दों का निर्माण करना आवश्यक है। यह पुस्तक पिछले साल अक्टूबर में तेलुगू सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से अमेरिका के वांगुरी फाउंडेशन द्वारा आयोजित 7वें विश्व तेलुगू साहित्य शिखर सम्मेलन पर आधारित है। उपराष्ट्रपति ने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की और पहल करने का आह्वान किया।