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खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की अनुमति के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं खारिज

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने को न्यायोचित करार देने वाले 25 जुलाई के अपने फैसले के खिलाफ दायर केंद्र सरकार और अन्य की पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी हैं। शीर्ष अदालत के जुलाई के उस फैसले में कहा गया था कि राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार प्राप्त है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र सरकार और कई अन्य पुनर्विचार याचिकाओं पर 8:1 के बहुमत से कहा कि फैसले में उन्हें कोई त्रुटि नहीं दिखती है। पुनर्विचार याचिका खारिज करने के पक्ष में मुख्य न्यायाधीश के अलावा में पीठ के अन्य न्यायाधीशों -न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।

हालांकि, नौ सदस्यीय पीठ में शामिल और मूल फैसले से असहमत न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने महसूस किया कि पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार के लिए पर्याप्त आधार बनता है। शीर्ष अदालत ने 24 सितंबर के अपने बहुत वाले आदेश में कहा, “उच्चतम न्यायालय रूल्स 2013 के आदेश ‘एक्सएल वहआईआई’ नियम 1 के तहत पुनर्विचार का कोई मामला नहीं बनता है। इसलिए पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया जाता है। शीर्ष अदालत ने मामले में खुली अदालत में सुनवाई के लिए आवेदन को भी खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार पुनर्विचार याचिका पर न्यायाधीशों द्वारा बिना किसी अधिवक्ता की मौजूदगी के न्यायाधीश के कक्ष में विचार किया जाता है।

केंद्र सरकार और कई अन्य ने फैसले की समीक्षा की मांग की थी। शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। इस फैसले में राज्यों के राजस्व को बढ़ावा देते हुए अदालत ने माना था कि राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी क्षमता प्राप्त है। साथ ही, यह भी कहा था कि इस तरह के कर रॉयल्टी से अलग है, जो कि खनन पट्टेदार द्वारा खनिज अधिकारों के लाभ के लिए पट्टादाता को दिया जाने वाला एक संविदात्मक प्रतिफल मात्र है।