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दुधवा नेशनल पार्क मे भरपूर है प्रकृति का उपहार

चौधरी मुकेश सिंह /वन्य जीव प्रेमी॥ सीरीज- 1
उत्तर प्रदेश राज्य का इकलौता नेशनल पार्क  जो की लखीमपुर खीरी जिले के तराई क्षेत्र नेपाल बॉर्डर से लगे हुए शहर पलिया कलां  से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ‘दुधवा नेशनल पार्क’ का क्षेत्र लगभग 810 स्क्वायर किलोमीटर मे फैला हुआ है। और थोड़ा पीछे चले तो 1958 में जब वन विभाग के द्वारा छोटी वन्य जीव सेंचुरी के रूप में विकसित किया गया था लेकिन उसके बाद मे 1977 में इसे सेंचुरी क्षेत्र से बढ़ाकर इसे नेशनल पार्क का गठन वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट सन उन्नीस सौ बहत्तर के अंतर्गत किया गया । दुधवा नेशनल पार्क में बहुतायत में वन्य जीव जैसे शेर , हाथी , गैङा,  हिरण , भालू एवं अन्य  सरीसृप वन्य जीवो के साथ-साथ लगभग 450 प्रकार के पंछी निवास करते है। बंगाल  फ्लोरीकन ग्रेट स्लेटी  वुड पीकर और सारसक्रेन इत्यादि है ।
पार्क के विकसित होने के बाद कई प्रकार की दिक्कतों का सामना वन विभाग को करना पड़ा था बहुतायत में अवैध शिकार एवं वन भूमी पर अवैध कब्जा आदि के अलावा जंगल को नुकसान पहुंचाना इनको रोकने के लिए  वन विभाग द्वारा अत्यधिक प्रयास किया था किया जा  रहा है।
 दुधवा नेशनल पार्क उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के साथ-साथ विदेश में भी अपनी अलग पहचान रखता है इसी कारण से दिन प्रतिदिन सैलानियों की संख्या में इजाफा हो रहा है । दुधवा नेशनल पार्क के अंतर्गत टाइगर रिजर्व में इस बार बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है जबसे टाइगर रिजर्व की स्थापना हुई है उसके बाद से निरंतर बाघों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है जो कि विगत वर्ष की जनगणना के अनुसार बाघों की संख्या पूर्व में 80 से 82 के बीच हुआ करती थी । लेकिन ताजा आंकड़ों के अनुसार बाघों की संख्या बढ़कर लगभग 130 से 135 के बीच हो गई है। डीटीआर क्षेत्र के बाहर के बाघो की संख्या कुल मिलाकर 107 से बढ़कर लगभग 153 हो गई है। यह बढ़ोतरी लगभग 45% की है।  पार्क में वन्य जीव विषय पर रिसर्च हेतु साइंटिस्ट एवं छात्र छाञाये आते हैं। दुधवा नेशनल पार्क के अंतर्गत दो रेंज आती हैं।
1- किशनपुर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी
किशनपुर रेंज में जैव विविधता के साथ पूर्ण संरक्षित क्षेत्र है इसे सन उन्नीस सौ बहत्तर में स्थापित किया गया था।  इसका कोर एरिया क्षेत्रफल लगभग 227 स्क्वायर किलोमीटर है यह क्षेत्र भी फ्लोरा एंड फाना से परिपूर्ण है ब्रिटिश काल में भी उल्लेख मिलता है  तात्कालिक अंग्रेज अधिकारी शिकार के लिए यहां पर आते थे। आजादी के बाद इसे भी रिजर्व फॉरेस्ट के रूप एवं फिर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी बनाया गया था ।
वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट  1972 से संरक्षित किया गया था। यहां पर भी  अवैध शिकार एवं वन भूमि पर अवैध कब्जा  की बहुत शिकायते थी  लेकिन वन विभाग के द्वारा  इस पर रोक लगाने में काफी हद तक कामयाबी मिली है।  इस समय किशनपुर रेंज में सैलानियों की आमद दिन पर दिन बढ़ती जा रही है और इसी वन क्षेत्र  में अक्सर सैलानियों को जंगल के राजा शेर के साथ अन्य जीव जंतुओं का प्रत्यक्ष रूप मे दीदार होता है। इससे सैलानियों में काफी रोमांच है। देश ही नहीं बल्कि विदेशो से भी सैलानियों का निरंतर आना-जाना लगा हुआ है। साथ ही यहा पर  वन्य जीवो एवं जंगल पर रिसर्च करने के लिए साइंटिस्ट एवं छात्र छाञाये आते हैं।
2- कतनिॅया घाट वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित कतनिॅॅया घाट का कवर क्षेत्र लगभग 400 स्क्वायर किलोमीटर है और इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र सन 1975 में घोषित किया गया था ।यहां पर भी वन्यजीवों की भरमार है क्योंकि यहा ग्रीन ग्रासलैंड होने के कारण वन्यजीवों को प्राकृतिक रहन-सहन काफी मुफीद आता है। ब्रिटिश काल में इस एरिया को शिकार गाह  के रूप में उपयोग किया जाता था । आजादी के बाद इस एरिया को वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी एक्ट 1972 के रूप में संरक्षित किया गया। संरक्षित होने के बाद से यहां पर सैलानियों का आना जाना शुरू हुआ था ।आज यहा सैलानियों के  ठहरने के लिए गेस्ट हाउस आदि की सुविधा भी है । यहां पर साइंटिस्ट छात्र वन्यजीवों पर रिसर्च करने हेतु आते हैं आज कतनिॅया घाट एक विशेष टूरिस्ट स्थान के लिए जाना जाता है।
इकोसिस्टम के कारण इन पार्कों सेंचुरी के आसपास रहने वाले निवासी अक्सर ही वन्यजीवों के हमलो का शिकार हो जाते हैं जिससे जनहानि एवं किसानों की फसलों को बहुत ही नुकसान वन्य-जीवो के द्वारा पहुंचाया जाता है । इधर कुछ वर्षों से हाथियों का झुंड अक्सर खेतों में आ जाता है फसलो को बहुत ही नुकसान पहुंचाता है। इनके अलावा छोटे वन्य जीव जैसे हिरण नील गाय जंगली सूअर इत्यादि भी फसलों को नुकसान पहुंचाते रहते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद भी वन्य जीव एवं जंगल की सीमा से लगे रिहाइसी इलाका एवं थारू जनजाति  समुदाय एवं किसान एक साथ रहने को मजबूर हैं । दुधवा नेशनल पार्क पर पर लेख लिखने का कारण मात्र एक यह है कि जन सामान्य में इस लेख से जागरूकता पैदा हो वह इस इकोसिस्टम जो नेचर से प्राप्त है इस धरोहर को सुरक्षित संरक्षित करने में आसपास के जन समुदाय एवं किसान सहायता करें।
 वन एवं वन्य जीव दोनों को ही सुरक्षित रखना  हम सभी का दायित्व है क्योंकि प्रकृति से प्राप्त उक्त धरोहर को संजोकर रखें इसकी रक्षा करें और समय-समय पर उक्त स्थान पर स्थित वन विभाग को  सहयोग करें जिससे इन वन एवं वन्य  जीवो नामक इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित एवं सुरक्षित रखा जा सके। क्योंकि इससे हम सभी को प्रचुर मात्रा में शुद्ध जलवायु प्राप्त होती है।