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कुष्ठ रोग दिवस: झिझक नहीं, उपचार करायें

नयी दिल्ली।  मानव जाति को ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में से एक, कुष्ठ रोग या कोढ़ की शुरुआत पैरों में झनझनाहट से होती है। लेपरे नामक जीवाणु से होने वाली यह बीमारी धीरे-धीरे फैलते हुए व्यक्ति के पूरे शरीर पर हल्के रंग के धब्बे छोड़ देती है। यह बीमारी त्वचा, परिधीय नसों, आंखों और ऊपरी श्वसन पथ को प्रभावित करती है। कुष्ठ रोग से ग्रसित व्यक्ति का जीवन यूं भी कम मुश्किल नहीं होता, इस बीमारी से जुड़ी अफवाहें उसे और मुश्किल बना देती हैं। एक बड़ी अफवाह यह है कि यह बीमारी छूने से फैलती है, जबकि इसकी सच्चाई कुछ और है। इंडियन एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट, वेनेरोलॉजिस्ट और लेप्रोलॉजिस्ट (आईएडीवीएल) की दिल्ली शाखा के अध्यक्ष डॉ रोहित बत्रा ने कहा, “कुष्ठ रोग अत्यधिक संक्रामक नहीं है लेकिन लंबे समय तक अनुपचारित व्यक्ति के साथ बार-बार संपर्क करने से रोग फैलता है।

अगर एक व्यक्ति समय पर इसका इलाज करवा ले तो बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है, लेकिन कई बार समाज में मौजूद धारणाओं के कारण लोग इलाज से झिझकते हैं। डॉ बत्रा ने कहा, “ कुष्ठ रोग सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो हमारे समाज में सबसे कमजोर लोगों को निशाना बनाती है। यदि समय पर उपचार नहीं किया जाता तो यह व्यक्ति को बुरी तरह दुर्बल बना सकती है। कुष्ठ रोग इलाज योग्य है और प्रारंभिक उपचार किसी भी अक्षमता को रोकने में मदद कर सकता है, फिर भी इसके साथ रहने वाले लोग समाज में फैली कलंक की धारणा के कारण अत्यधिक मानसिक आघात और चिंता से गुजरते हैं जो उन्हें अवसाद की ओर भी ले जाती है।

उन्होंने कहा, “ लोग इलाज के लिये सामने आने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर लोगों को पता चलेगा कि उन्हें कुष्ठ रोग है तो उनका परिवार और समुदाय उन्हें अस्वीकार कर देगा। कुष्ठ रोग के मामले दूर-दराज के इलाकों में अधिक पाये जाते हैं, जिन्हें ढूंढना मुश्किल होता है। हर साल 30 जनवरी को भारत में कुष्ठ दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य कुष्ठ रोग के बारे में जन जागरुकता बढ़ाना है ताकि लोगों को इलाज कराने और सम्मान का जीवन जीने में सहायता मिल सके। इस वर्ष विश्व कुष्ठ दिवस की थीम “एक्ट नाउ, एंड लेप्रोसी” है। साल 2005 में केन्द्र सरकार ने देश को इस बीमारी से मुक्त घोषित कर दिया था, लेकिन आंकड़े कुछ और बताते हैं। हर साल दुनियाभर में कुष्ठ रोग के दो लाख मामले सामने आते हैं जिनमें से आधे से ज्यादा भारत से होते हैं।

आईएडीवीएल दिल्ली के सचिव डॉ सुमित गुप्ता ने कहा, “ राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार भारत को 2005 में ‘कुष्ठ मुक्त’ घोषित किया गया था। आज भारत में दुनिया के नये कुष्ठ मामलों का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है। साल 2005 में कुष्ठ रोग के महामारी विज्ञान उन्मूलन की घोषणा करना न केवल भ्रामक रहा है, बल्कि इसने लोगों के दिमाग को कुष्ठ रोग से दूर कर दिया है जो हर साल हजारों लोगों को अपंग बना रहा है। इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी ने कुष्ठ नियंत्रण स्क्रीनिंग और जागरुकता कार्यक्रमों को प्रभावित किया, जिससे बोझ और बढ़ गया है। डॉ गुप्ता के अनुसार, “शायद यह तकनीक का उपयोग करने का समय है जैसे कि कोविड के समय में किया गया था। हम निदान किये गये रोगियों और उनके करीबी संपर्कों के लिये कुष्ठ रोग केंद्रित ऐप बना सकते हैं जो अनुपालन और उपचार और पुनर्वास उपायों तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करेगा। कुष्ठ केंद्रों और इलाज करने वाले चिकित्सकों के लिये इसी तरह के ऐप डेटा को बेहतर तरीके से ट्रैक करने में मदद कर सकते हैं।

आईएडीवीएल यह मानता है कि कुछ सरल योजनाओं के साथ कुष्ठ रोग से लड़ा जा सकता है और इसे समाप्त किया जा सकता है। इन योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण है कि बीमारी से ग्रसित व्यक्ति इसका पता लगने के बाद झिझके नहीं, बल्कि उपचार करवायें। लोगों की इसी झिझक को दूर करने और बीमारी के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिये भारत आईएडीवीएल कुष्ठ रोग अनुसंधान, सामुदायिक प्रबंधन और जागरुकता अभियानों में सबसे आगे रहे हैं।

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