बिहार जातिगत जनगणना पर उच्चतम न्यायालय में केंद्र का हलफनामा
नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने बिहार सरकार को जाति आधारित जनगणना करने को हरी झंडी देने वाले पटना उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि संविधान के तहत केंद्र के अलावा कोई अन्य निकाय के पास जनगणना या इस प्रकार कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा है कि जनगणना अधिनियम 1948 के तहत केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार दिया गया था। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 21 अगस्त को शीर्ष अदालत के समक्ष कहा था कि बिहार सरकार द्वारा शुरू किए गए जातिगत सर्वेक्षण का असर होगा। इसलिए उसे (केंद्र) हलफनामा दाखिल करने की आवश्यकता होगी। शीर्ष अदालत ने इसकी मंजूरी दे दी थी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय ने दो पन्नों के हलफनामे में कहा है कि केंद्र सरकार संविधान के प्रावधानों और लागू कानून के अनुसार एससी/एसटी/एसईबीसी और ओबीसी के उत्थान के लिए सभी सकारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। हलफनामे में कहा गया है कि जनगणना अधिनियम 1948 केवल केंद्र सरकार को उक्त अधिनियम की धारा 3 के तहत जनगणना करने का अधिकार देता है। आगे कहा गया है, ‘जनगणना एक वैधानिक प्रक्रिया है और जनगणना अधिनियम 1948 के तहत होती है।जनगणना का विषय सातवीं अनुसूची में प्रविष्टि 69 के तहत संघ सूची में शामिल है।
सरकार ने उक्त प्रविष्टि के तहत वर्णित शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने जनगणना अधिनियम 1948 बनाया है। शीर्ष अदालत ने नीतीश कुमार सरकार द्वारा की गई कवायद पर रोक लगाने का आदेश देने से इनकार कर दिया था। पीठ ने कहा था, ‘हम सर्वेक्षण या डेटा के प्रकाशन पर तब तक रोक नहीं लगाएंगे जब तक कि प्रथम दृष्टया मामला सामने न आ जाए क्योंकि प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है। पटना उच्च न्यायालय ने एक अगस्त को राज्य में जाति जनगणना कराने के बिहार सरकार के 6 जून 2022 के फैसले को मंजूरी दे दी थी। उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अभ्यास पूरी तरह से वैध था और ‘न्याय के साथ विकास’ प्रदान करने के वैध उद्देश्य के साथ उचित क्षमता के साथ शुरू किया गया था।