यौन हमले के मामलों में नहीं मिल सकेगी अग्रिम जमानत

लखनऊ।  उत्तर प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं मिल सके, इसके लिये योगी सरकार ने मौजूदा कानून में संशोधन के प्रस्ताव को विधान सभा में गुरुवार को पेश कर दिया। संशोधन प्रस्ताव के दायरे में यौन हिंसा से जुड़े अपराधों के अलावा गिरोहबंद अपराधों (गैंगस्टर एक्ट), नशे के अवैध कारोबार से संबंधित अपराधों, सरकारी कामकाज में गोपनीयता बरतने वाले ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट के उल्लंघन से जुड़े मामलों और मृत्युदंड के प्रावधान वाले गंभीर अपराधों को भी शामिल कर इन अपराधों के अभियुक्तों को अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित करने की योगी सरकार ने पहल की है। विधान मंडल के चालू मानसून सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को योगी सरकार इस संशोधन प्रस्ताव को दोनों सदनों से पारित कराने का प्रयास करेगी। जिससे राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद इसे यथाशीघ्र लागू किया जा सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिये दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 में इस आशय के संशोधन प्रस्ताव को पारित करने के अनुरोध के साथ विधान सभा में सदन पटल पर आज पेश कर दिया। योगी ने बतौर राज्य के गृह मंत्री, विधान सभा में ‘दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम 2022’ के प्रस्ताव को पेश किया। प्रस्ताव के अनुसार इस संशोधन का उद्देश्य अग्रिम जमानत के उपबंध के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 में संशोधन कर महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध यौन हमले से जुड़े अपराध करने वालों को अग्रिम जमानत मिलने से रोकना है। जिससे इन अपराधों के आरोपियों को अग्रिम जमानत का दुरुपयोग कर सबूतों को मिटाने और पीड़ितों को भयभीत करने अथवा प्रभावित करने से रोका जा सके। इसके लिये संशोधन प्रस्ताव में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 में उपधारा (6) के स्थान पर उपधारा 6 में जोड़े जाने वाले कानूनों पर अग्रिम जमानत के उपबंध लागू नहीं होंगे।


प्रस्ताव के उद्देश्य में कहा गया है कि महिलाओं और बालकों एवं बालिकाओं के विरुद्ध अपराधों के प्रति शून्य सहिष्णुता (जीरो टॉलरेंस) की नीति के अनुसरण में यौन अपराधों में जैविक साक्ष्यों को तत्काल जुटाने, ऐसे साक्ष्यों को नष्ट होने से बचाने और अभियुक्त द्वारा पीड़ित अथवा गवाहों को भयभीत करने से रोकने के लिये उत्तर प्रदेश में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 को संशोधित करने का निश्चय किया गया है। ताकि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012, भारतीय दंड संहिता 1860 में बलात्कार संबंधी धारा 376 के सभी प्रावधानों से संबंधित अपराधों को अग्रिम जमानत के उपबंध के अपवादों में शामिल किया जा सके। इस अपवाद के अंतर्गत दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 में संशोधन कर विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967, मादक द्रव्य एवं नशीली दवाओं के निषेध से जुड़े कानून, शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923, उप्र गैंगस्टर कानून 1986, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण कानून 2012, मृत्युदंड के प्रावधान वाले अपराधों तथा भारतीय दंड संहिता 1860 में यौन हिंसा से जुड़े सभी अपराध समाहित होंगे। स्पष्ट है कि नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार से जुड़ी सभी गतिविधियों, गैंगस्टर एक्ट, बाल यौन हिंसा (पॉक्सो), आईपीसी में बलात्कार सहित यौन हिंसा के सभी मामलों और मृत्युदंड की सजा के प्रावधान वाले सभी अपराधों को अग्रिम जमानत के दायरे से बाहर कर दिया जायेगा।

इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी ने गुरुवार को सदन पटल पर उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) विधेयक 2022 भी पेश किया। इसका मकसद हड़ताल, बंद, दंगा लोक उपद्रव एवं विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर सभी प्रकार की हिंसा से जुड़ी गतिविधियों को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिये निजी अथवा सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का दावा करने की अवधि को 03 माह से बढ़ाकर 03 वर्ष करना है। सरकार ने इसके लिये उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली (संशोधन) अधिनियम 2020 में संशोधन का प्रस्ताव सदन के समक्ष पेश किया है। स्पष्ट है कि इस प्रस्ताव के पारित होने पर हड़ताल, बंद, दंगा, लोक उपद्रव एवं विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक अथवा निजी संपत्तियों को क्षति पहंचाये जाने पर संपत्ति स्वामी 03 महीने के बजाय अब 03 साल के भीतर दावा अधिकरण के समक्ष क्षतिपूर्ति का दावा कर सकेंगे। साथ ही संपत्ति को क्षति पहुंचाने वाले व्यक्ति को दावा अधिकरण के निर्णय के अनुसार क्षतिपूर्ति की राशि 30 दिन के भीतर जमा करने की अनिवार्यता का प्रावधान भी संशोधन प्रस्ताव में शामिल किया गया है।

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