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सरकारी नीतियों का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव किसानों और खेती पर पड़ा: अखिलेश यादव

लखनऊ ,

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि मुख्यमंत्री जी के तथाकथित निर्देशों के बाद भी उत्तर प्रदेश के हर क्षेत्र में स्थितियां अनियंत्रित हैं। सरकारी नीतियों का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव किसानों और खेती पर पड़ा है। यूरिया की अनुपलब्धता के कारण खेती के सामने संकट है। भाजपा की सरकार में संकट के समाधान की जगह उसका विस्तार ही दिखाई दे रहा है। खरीफ की फसल खाद के बगैर बर्बाद होने के कगार पर है। राज्य सरकार खाद के कालाबाजारियों पर सख्ती से हिचक रही है क्योंकि इनमें भाजपाई भी शामिल है।

Urea of 266 rupees being sold in 400, adequate stock of urea in the district, yet the worst situation in Parlakot of Kanker | 266 रुपए का यूरिया बिक रहा 400 में,
सरकारी ढिलाई का फायदा उठाते हुए बाजार में यूरिया खाद, जिसकी निर्धारित कीमत 266 रूपये प्रति बोरी है, 400 रूपए से लेकर 800 रूपये तक में बिक रही है। साधन सहकारी समितियों के गोदाम खाली बताए जा रहे हैं। ब्लैक करने वालों ने अपने नौकरों, घरवालों और दूसरे फर्जी नामों पर खाद की बिक्री दिखाकर माल हड़प लिया है। इस तरह हजारों कुंतल खाद अवैध ढंग से बाजार से गायब कर दी गई है। परेशान हाल किसान भटक रहे हंै। कृषि विभाग मामले में लीपापोती कर रहा है तो मुख्यमंत्री जी लम्बी-चैड़ी घोषणा करने के बाद पलट कर नहीं देखते कि उनके अधिकारी गम्भीरता से उन्हें ले भी रहें या नहीं।

Manure in stock farmers in crisis - स्टॉक में खाद भरपूर, कीमत पर जिच से संकट में किसान
किसान की चिंता है कि अगर उसे जल्दी ही यूरिया खाद नहीं मिली तो उसके धान की फसल बर्बाद हो जाएगी। खाद के बगैर फसल के दाने कमजोर होंगे और पैदावार भी कम होगी। तब किसान के सामने आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो जाएगा। उसके कर्ज की अदाएगी भी नहीं हो पाएगी। इसीलिए वह खाद की खरीद के लिए कई कोस चलकर भी सुबह-सुबह 5-6 बजे ही साधन सहकारी समिति के सामने पहुंच जाता है और घंटो लाइन में लगे होने के बावजूद भी उसे निराशा ही हाथ लगती है। यह भाजपा राज की विशेषता है कि वह हर किसी को लाइन में जरूर लगा देता है। लाइन में घंटो खड़े होकर भी कुछ न हासिल होना लोगों की नियति बन गई है। मुख्यमंत्री  अपनी आदत के अनुसार सख्त कार्रवाई के आदेश जारी करने में देर नहीं करते हैं परन्तु अधिकारी अपनी मनमानी से नहीं चूकते हैं। राजधानी में ही कई ऐसी साधन सहकारी समितियां है जो कई साल से बंद पड़ी हैं। खुले आम कालाबाजारी हो रही है। खाद विक्रेता, अफसर और माफिया मिलकर किसानों को लूट रहे है। उन्हें मालूम है कि भाजपा सरकार उनके खिलाफ कुछ नहीं करेगी। भाजपा तो झूठ के बल पर ही साढ़े तीन साल से सत्ता में टिकी है। जब इतने दिनों जनहित का कोई काम नहीं किया तो अब वह बाकी दिनों में कौन चमत्कार दिखाएगी? अधिकारी भी समझ गये हैं कि भाजपा सरकार का एजेण्डा कुछ और है। किसानों के हितों से उनका कोई लेना देना नहीं है

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