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उच्च न्यायलय ने सिसोदिया की जमानत की अर्जी फिर की खारिज

नयी दिल्ली।  दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामलों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत की अर्जी मंगलवार को नामंजूर कर दी। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के मामलों में सिसोदिया की ओर से दायर दूसरी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सिसोदिया भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दायर मामले में जमानत की तिहरी कसौटी पूरी नहीं कर सके हैं।

अदालत ने कहा कि आरोपी ने स्वीकार किया गया है कि वह अपने द्वारा इस्तेमाल किए गए दो फोन जांच एजेंसी को पेश नहीं कर सके हैं और आराेपी ने यह दावा भी किया है कि वे फोन क्षतिग्रस्त हो गए थे। अदालत ने कहा कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सिसोदिया जमानत पर बाहर जा कर सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। अदालत ने यह टिप्पणी भी की है कि सिसोदिया प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनके पास 18 मंत्रालयों की जिम्मेदारी रही है।

अदलत ने उनके ऊपर लगे आरोपों के संबंध में कहा कि यह सिसोदिया द्वारा सत्ता के गंभीर दुरुपयोग और विश्वास के उल्लंघन का मामला दिखता है। इसकी जांच में एकत्र की गई सामग्री से पता चलता है कि सिसोदिया ने अपने उद्येश्य के अनुरूप सार्वजनिक राय तैयार करा करके आबकारी नीति बनाने की प्रक्रिया को विकृत किया। न्यायाधीश ने कहा कि नयी शराब नीति बनाने की सिसोदिया की इच्छा से यह भ्रष्टाचार हुआ और उन्होंने नीति निर्माण में हेरफेर करने की कोशिश की और वह अपने द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट से ही भटक गए।

न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में कई गवाह सरकारी कर्मी हैं और आवेदक के विरुद्ध बयान दिए हैं। आवेदक उन्हें प्रभावित करने की कोशिश कर सकता है, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। विवादास्पद आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन के आरोप में प्रवर्तन निदेशलाय द्वारा (ईडी) दायर मामले अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष प्रथम दृष्टया सिसोदिया के खिलाफ धनशोधन का मामला बनाने में सक्षम दिखा है। अदालत ने साथ में कहा कि सिसोदिया हर हफ्ते अपनी पत्नी से मिल सकते हैं और इस संबंध में सुनवाई अदालत का आदेश लागू रहेगा।

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