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डॉ.भगवती शरण मिश्र ने बिहार राजभाषा को क्रियात्मक स्वरूप दिया: उषा किरण

नयी दिल्ली।  पद्मश्री और भारत-भारती पुरस्कार से सम्मानित लेखिका उषा किरण खान ने ऐतिहासिक और धार्मिक उपन्यासकार डॉ. भगवती शरण मिश्र की दूसरी पुण्यतिथि पर रविवार को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि ‘दुलर्भ’विशेषताओं से परिपूर्ण वह एक महान व्यक्तित्व थे। श्रीमती खान आज यहां इस मौके पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने डॉ. मिश्र को श्रद्धांजलि देते हुए कहा,“ भगवती शरण मिश्र एक अद्भुत रचनात्मक व्यक्ति थे। वह कुशल प्रशासक थे। बिहार राजभाषा विभाग का जो क्रियात्मक स्वरूप है, वह उन्हीं की देन है। वह परम विद्वान थे और दुर्धर्ष लेखक, कवि उपन्यासकार। बहुत अच्छे वक्ता मिश्र जी सतत सृजनशील रहते। उनकी स्मृति को नमन।

इस मौके पर अर्थशास्त्री, सामाजिक विचारक एवं ब्राक (बीआरएसी) ,बंगलादेश के अध्यक्ष डॉ. हुसैन जिल्लुर रहमान ने कहा,“क्या अद्भुत स्मृति है। देख सकते हैं कि आपकी प्रेरणाएं कहां से आती हैं। आपके यशस्वी पिता को सम्मान। अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित प्रतिष्ठित उपन्यासकार अपने लेखन की विपुलता एवं गुणवत्ता से उपन्यास-लेखकों की अग्रिम पंक्ति में स्थान रखते हैं। उनकी अबतक करीक 100 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकीं हैं।

सामाजिक एवं ऐतिहासिक उपन्यास के पुरोधा डॉ. मिश्र की प्रमुख पुस्तकों में पहला सूरज (पुरस्कृत), पवनपुत्र (पुरस्कृत), प्रथम पुरुष (पुरस्कृत), पुरुषोत्तम (पुरस्कृत), पीतांबरा (पुरस्कृत), काके लागूं पांव, गोबिन्द गाथा (पुरस्कृत), मैं भीष्म बोल रहा हूँ, देख कबीरा रोया,पद्मनेत्रा (पुरस्कृत), भारत के राष्ट्रपति, भारत के प्रधानमंत्री आदि शामिल हैं।

देश के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों ने उनकी कृतियों पर पी-एच. डी. एम.फिल, और डी. लिट्‌. की डिग्रियां ली गयी हैं। वह हिन्दी के अलवा अंग्रेज़ी, संस्कृत और बंगला के भी प्रचंड विद्वान थे। उनकी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ है। सत्ताईस अगस्त 2021 को इस महान साहित्यकार का निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे।

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