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असम में अहोम राजवंश का समाधि स्थल ‘मोइदम’ विश्व धरोहर में शामिल

नयी दिल्ली।  असम के चराइदेव जिले में स्थित प्राचीन अहोम राजवंश के टीले वाले समाधि-स्थल ‘मोइदम’ को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। यह घोषणा यहां चल रही यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति की 46वीं बैठक के दौरान शुक्रवार को की गई। असम की ‘मोइदम’ भारत की 43वीं संपत्ति है, जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में स्थान मिला है। असम की दो और सम्पत्तियों काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और मानस वन्यजीव अभयारण्य को इससे पहले 1985 में प्राकृतिक श्रेणी की विश्व धरोहरों में शामिल किया गया था। आज जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार असम का ‘मोइदम’ विशाल वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह वास्तुशिल्प की दृष्टि से मिस्र में फिरौन के पिरामिडों और चीन में प्राचीन शाही कब्रों की ही तरह विलक्षण धरोहर है।

ऐसी धरोहरों को यूनेस्को की सूची में शामिल करने का उद्देश्य प्राकृतिक और मिश्रित संपत्तियों को उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के आधार पर संरक्षित करना और इसे बढ़ावा देना है। इस सूची में 195 देशों की सम्पत्तियां शामिल हैं। भारत 2021-25 के लिए विश्व धरोहर समिति का सदस्य चुना गया है। वर्ष 1972 में यूनेस्को के विश्व धरोहर सम्मेलन में शुरू होने के बाद पहली बार यह सम्मेलन भारत में आयोजित किया गया है। विश्व धरोहर समिति के 46वां सत्र को 21 जुलाई को नयी दिल्ली के प्रगति मैदान में स्थित भारत मंडपम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उद्घाटन किया था। सम्मेलन 31 जुलाई तक चलेगा। इस बैठक में 150 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो यूनेस्को विश्व धरोहर सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता हैं और जिन्होंने धरोहरों के संरक्षण के संकल्पों के प्रति उत्तरदायित्व स्वीकार किया है।

‘मोइदम’ को यूनेस्कों के विश्व धरोहर में शामिल करने की घोषणा के बाद संवाददाताओं को संबोधित करते हुए केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि इससे दुनिया भर में इस प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि 700 साल पुरानी चराइदेव में अहोम राजवंश के मृत लोगों को समाधि देने की इस अनूठी प्रणाली असम और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का एक अद्भुत नमूना है। श्री शेखावत ने कहा कि ‘मोइदम’ को वैश्विक मान्यता दिलाने का नेतृत्व प्रधानमंत्री ने किया। उन्होंने इस इस सम्पत्ति को 2023 में यूनेस्को की समिति में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में दर्ज कराया था । उन्होंने कहा कि यह नामांकन मोइदम्स के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है। यह विश्व धरोहर सूची में शामिल होने वाला भारत का सांस्कृतिक विरासत स्थल और पूर्वोत्तर भारत का तीसरा समग्र स्थल बन गया है।

मंत्री ने कहा कि इस तरह भारत ने पिछले एक दशक में अपनी 13 सांस्कृतिक धरोहरों को विश्व धरोहरों की यूनेस्को की सूची में शामिल करवाने में सफल हुआ है और इस सूची में सबसे अधिक विश्व धरोहर रखने वाले देशों में छठे स्थान पहुंच गया है। उन्होंने का कि यह वैश्विक मान्यता नए भारत के विश्व मंच पर भारत की विरासत को उजागर करने के अथक प्रयास का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि यह मान्यता इन ऐतिहासिक खजानों के संरक्षण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और असम सरकार के प्रयासों को रेखांकित करती है। श्री शेखावत ने कहा कि ऐसे स्मारकों के संरक्षण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इन स्थलों का दौरा करके और उनका समर्थन करके हम उनके संरक्षण और भारत के समृद्ध और विविध इतिहास की व्यापक कहानी में योगदान देते हैं।

गौरतलब है कि पूर्वोत्तर भारत में ताई-अहोम द्वारा निर्मित शाही टीला दफन स्थल मोइदम पूर्वी असम में पटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित है। इन दफन टीलों को ताई-अहोम द्वारा पवित्र माना जाता है और ये उनकी अनूठी अंत्येष्टि प्रथाओं को दर्शाते हैं। ताई-अहोम लोग 13वीं शताब्दी में असम पहुंचे थे। उन्होंने चराइदेव को अपना पहला शहर और वहां अपने मृत परिजनों के लिए विशिष्ठ अंत्येष्ठि स्थल के रूप में स्थापित किया। तेरहवीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक, 600 वर्षों तक ताई-अहोम ने पवित्र भूगोल बनाने के लिए पहाड़ियों, जंगलों और पानी जैसे प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके मोइदम या ‘आत्मा के लिए घर’ का निर्माण किया। अपने राजाओं को दिव्य मानते हुए, ताई-अहोम ने शाही दफ़न के लिए मोइदम के निर्माण की एक अलग अंत्येष्टि परंपरा विकसित की। इन टीलों को शुरू में लकड़ी से और बाद में पत्थर और जली हुई ईंटों से बनाया गया था, जैसा कि अहोम के पारंपरिक विहित साहित्य, चांगरुंग फुकन में प्रलेखित है।

शाही दाह संस्कार की रस्में औपचारिक रूप से आयोजित की गईं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती हैं। बीसवीं सदी के शुरुआती दौर के खजाने की खोज करने वालों की चुनौतियों के बावजूद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और असम राज्य पुरातत्व विभाग ने चोरादेओ की अखंडता को बहाल करने और संरक्षित करने के लिए सहयोग किया है। केंद्रीय और राज्य दोनों नियमों से सुरक्षा के साथ, इस स्थल को इसकी संरचनात्मक अखंडता और सांस्कृतिक विशिष्टता को बनाए रखने के लिए अच्छी तरह से बनाए रखा गया है। वर्ष 2024 में विश्व धरोहर समिति का 46वां सत्र वर्तमान में दुनिया भर से 27 नामांकनों की जांच कर रहा है, जिसमें 19 सांस्कृतिक, 04 प्राकृतिक, 02 मिश्रित स्थल और मौजूदा सीमाओं में 02 महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं।