पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट ने थोड़ी सी छूट के साथ समय पर चुनाव कराने का दिया आदेश
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट ने एक विभाजित फैसले में पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) को पंजाब में चुनाव के लिए राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और खैबर पुख्तुनवा (केपी) में चुनाव के लिए राज्यपाल गुलाम अली से परामर्श करने का निर्देश दिया ताकि 90 दिनों की निर्धारित समय सीमा के भीतर चुनाव कराये जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने आगामी 09 अप्रैल को मतदान कराने संबंधी राष्ट्रपति के 20 फरवरी के फैसले को रद्द कर दिया और राज्यपाल को ईसीपी के परामर्श के बाद चुनाव की तारीख तय करने का आदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल, न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर और न्यायमूर्ति मुहम्मद अली मजहर द्वारा दिए गए बहुमत के फैसले ने ईसीपी को मतदान की तारीख का प्रस्ताव देने की अनुमति दी, जो किसी व्यावहारिक कठिनाई के कारण 90 दिनों की समय सीमा के आड़े आती हो।
यह छूट इसलिए दी गई है क्योंकि अदालत को यह बताया गय कि था कि चुनाव की तारीखों के आने में देरी के कारण,समय सीमा को पूरा करना संभव नहीं हो सकता है। बहुमत के फैसले में कहा गया कि मामला यह भी था कि संभवतः कानून की गलतफहमी के कारण, ईसीपी ने खुद को चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 57 के तहत आवश्यक परामर्श के लिए उपलब्ध नहीं कराया। दूसरी ओर न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल द्वारा दिया गया अल्पमत दृष्टिकोण यह था कि स्वतः संज्ञान ‘अनुचित जल्दबाजी’ के साथ शुरू किया गया था और यह ‘अनुचित’ था। संविधान के अनुच्छेद 184 (3) के तहत स्वत: संज्ञान कार्यवाही शुरू करने या अनुच्छेद 184 (3) के तहत याचिकाओं पर विचार करने के लिए असाधारण अधिकार क्षेत्र का आह्वान करने का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि लाहौर उच्च न्यायालय (एलएचसी) की एकल पीठ ने पहले ही मामले में फैसला कर दिया है। 10 फरवरी को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया गया था और फैसला अभी भी लागू है।
निर्णय में कहा गयाकि इसी तरह, एलएचसी के समक्ष दायर इंट्रा-कोर्ट अपील अभी भी लंबित है, और इसके अलावा, उच्च न्यायालय के समक्ष किसी भी याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 185 (3) के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया है। अल्पमत के फैसले ने आगे बताया कि मंज़ूर इलाही और बेनज़ीर भुट्टो मामलों में तय किए गए सिद्धांतों के आलोक में स्वप्रेरणा और दो याचिकाएं, अनुच्छेद 184 (3) के तहत सर्वोच्च न्यायालय के असाधारण मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला नहीं हैं।