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बुजुर्गों ने दिया जीडीपी में तीन प्रतिशत का योगदान

नयी दिल्ली।  वित्त वर्ष 2023-24 में बुजुर्गों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में तीन प्रतिशत का योगदान दिया है। एक अध्ययन के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय बुजुर्गों ने 68 अरब डॉलर का श्रम योगदान दिया है जो भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का तीन प्रतिशत है। ये बुजुर्ग प्रतिवर्ष लगभग 14 अरब घंटे पारिवारिक देखभाल और 2.6 अरब घंटे सामुदायिक कार्यों में देते हैं। यदि इच्छुक बुजुर्गों को पुनः कार्यबल में शामिल किया जाए तो भारत की जीडीपी में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है।

अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2047 तक भारत में 30 करोड़ बुजुर्ग होंगे। गैर सरकारी संगठन रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज़ की मंगलवार को यहां जारी एक रिपोर्ट “ लोंगेविटी : ए न्यू वे आफ अंडरस्टेंडिंग ऐजिंग” में कहा गया है कि वृद्धजनों की ज़रूरतों में आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण, भागीदारी की स्वतंत्रता और सामाजिक जुड़ाव प्रमुख हैं। अध्ययन के अनुसार समाज-आधारित नवप्रवर्तक और परोपकारी संस्थाएं अपनाकर दीर्घजीवन के क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए दीर्घायु को सामाजिक चेतना का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। बुजुर्गों के जीवन स्तर को बेहतर करने हेतु नवाचार को प्रोत्साहन देना हाेगा और डेटा, क्षमता और सहयोग में प्रणालीगत खामियों को दूर किया जाना चाहिए। यह रिपोर्ट दीर्घायु के प्रति सोच को सिर्फ लंबे जीवन तक सीमित न रखते हुए, बेहतर जीवन की ओर केंद्रित करती है।

अध्ययन में देश में बुजुर्गों के कल्याण के लिए काम कर रही प्रमुख संस्थाओं का सहयोग लिया गया है। इसे 10 महीनों की अवधि में अग्रणी विशेषज्ञ संगठनों के साथ संवाद के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें वृद्धावस्था की अवधारणा, इसकी चुनौतियां और उपाय गहराई से समझा गया है। रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज़ की प्रमुख रोहिणी निलेकणी ने कहा कि करोड़ों लोगों की देखभाल के लिए बेहतर संरचनाओं की आवश्यकता होगी। वृद्ध सिर्फ निर्बल नहीं हैं बल्कि वे अनुभव का स्रोत भी हैं। निजी परोपकार बहु-क्षेत्रीय नवाचार की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभा सकता है। डालबर्ग एडवाइजर्स की एशिया प्रशांत में क्षेत्रीय निदेशक श्वेता टोटापल्ली ने कहा कि भारत में पहले से ही ऐसे सामाजिक संगठन हैं जो वृद्धावस्था को नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं।