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प्रौद्योगिकी कानूनी व्यवस्था का हिस्सा: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि प्रौद्योगिकी अब पसंद का विषय नहीं बल्कि कानूनी प्रणाली का हिस्सा है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति नहीं देने के फैसले के खिलाफ वकील सर्वेश माथुर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सभी उच्च न्यायालयों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि बार के किसी भी सदस्य को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं या हाइब्रिड सुविधा के माध्यम से सुनवाई में भाग लेने से वंचित न किया जाए, क्योंकि प्रौद्योगिकी कानूनी किताबों की तरह ही कानूनी व्यवस्था का एक हिस्सा है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि देश के सभी न्यायाधीशों को यह महसूस करना होगा कि प्रौद्योगिकी अब पसंद का विषय नहीं है। यह कानूनी प्रणाली का हिस्सा है। पीठ ने कहा, “हमें सूचित किया गया है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से सभी वीडियो उपकरण रद्द कर दिए हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म के जरिए कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पीठ ने महाराष्ट्र के महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से पूछा,“हमें बताएं! देश के प्रमुख वित्तीय केंद्रों में से एक उच्च न्यायालय प्रौद्योगिकी के मामले में इतना पीछे क्यों है? पीठ ने कहा,“हमारे पास अदालत कक्ष में इंटरनेट होना चाहिए। उच्च न्यायालय परिसर में इंटरनेट सुविधाएं होनी चाहिए, जैसा कि शीर्ष अदालत में उपलब्ध है।

पीठ ने इस पर निराशा व्यक्त की कि कई उच्च न्यायालय केंद्र द्वारा धन आवंटित किए जाने के बावजूद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने में विफल रहे हैं। पीठ ने कहा कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय काफी पीछे नजर आ रहा, जबकि केरल और उड़ीसा प्रौद्योगिकी को अपनाने में अन्य उच्च न्यायालयों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। पीठ ने देशभर के सभी उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में सुविधा की उपलब्धता और इसके उपयोग की जांच करने का निर्णय लिया।

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