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बाल यौन शोषण पीड़िता पहचान खुलासा मामले पर उच्चतम न्यायायल का विभाजित फैसला

नई दिल्ली, 

उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने बाल यौन उत्पीड़न पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के अपराध से आरोप मुक्त करने संबंधी याचिका पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को सुनवायी के बाद अलग अलग फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने एक-दूसरे से असहमति वाला फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति बनर्जी ने अपने फैसले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी, जबकि न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि आरोपमुक्त करने की गुहार खारिज करने का उच्च न्यायालय का आदेश कानून के अनुरूप नहीं हैं। न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा, ‘हमारे समाज में यौन अपराध के शिकार लोगों को यदि अपराध का अपराधी नहीं तो अक्सर उकसाने वाला माना जाता है, भले ही पीड़ित पूरी तरह से निर्दोष हो। पीड़ित के साथ सहानुभूति रखने के बजाय लोग पीड़ित के साथ गलत बर्ताव करने लगते हैं । पीड़िता का उपहास किया जाता है। बदनाम किया जाता है। गपशप की जाती है और यहां तक ​​कि बहिष्कृत भी किया जाता है।


न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 23 के तहत अपराध में सीआरपीसी की धारा 155 (2) की प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है, जो गैर-संज्ञेय है और विशेष अदालत को जांच में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर गौर करने की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने ‘करावली मुंजावु’ अखबार के संपादक गंगाधर नारायण नायक उर्फ ​​गंगाधर हिरेगुट्टी की अपील पर विभाजित फैसले दिये। गंगाधर नारायण ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 17 सितंबर 2021 के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें 16 वर्षीया पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के अपराध के लिए आरोप मुक्त करने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ में इस अदालत की रजिस्ट्री से कहा है कि वह इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे ताकि बड़ी पीठ गठित कर अंतिम फैसला लिया जा सके।

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