मुंबई के एक कॉलेज में ड्रेस कोड के खिलाफ दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि मुंबई के एक निजी कॉलेज में विद्यार्थियों के हिजाब, नकाब, बुर्का, टोपी आदि पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कॉलेज के छात्रों के एक समूह द्वारा दायर इस याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताते हुए याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता से कहा कि मामले को जल्द ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने मामले को अत्यावश्यक बताते हुए शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। अधिवक्ता ने कहा, “यूनिट टेस्ट जल्द ही होंगे, कृपया इसे सूचीबद्ध करें।
मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा, “मैंने मामले की सुनवाई के लिए पहले ही एक पीठ को नियुक्त कर दिया है और इसे आने वाले दिनों में जल्द ही सूचीबद्ध किया जाएगा,”।विद्यार्थियों ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि ड्रेस कोड मनमाना और भेदभावपूर्ण है।कॉलेज ने ड्रेस कोड लागू करने का आदेश देकर गलत किया है। उन्होंने कहा, “यह कोड उनके परिधान चुनने के अधिकार यानी संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत उनकी निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उनके धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ड्रेस कोड और परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का आदि पर प्रतिबंध उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कोड के अनुसार, विद्यार्थियों की पोशाक औपचारिक और शालीन होनी चाहिए और किसी भी विद्यार्थी के धर्म का खुलासा नहीं करना चाहिए। मुंबई में एन जी आचार्य और डी के मराठे कॉलेज के अधिकारियों ने अपने विद्यार्थियों को परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पहनने से रोकने के लिए एक ड्रेस कोड निर्धारित किया है।नौ छात्राओं ने इस ड्रेस कोड को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जहां न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर राजेश एस पाटिल की पीठ ने 26 जून को याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि ड्रेस कोड का पालन करने का आग्रह कॉलेज परिसर के भीतर है और याचिकाकर्ताओं की पसंद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्यथा प्रभावित नहीं होती है।उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देते हुए छात्राओं ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की।