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सुप्रीम कोर्ट ने नायडू के खिलाफ सीबीआई जांच की याचिकाएं की खारिज

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय रिश्वत की कथित पेशकश के एक पुराने मामले में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का निर्देश देने की मांग वाली एक रिट याचिका बुधवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक अल्ला रामकृष्ण रेड्डी की इस याचिका पर संबंधित पक्षों के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद उस पर विचार करने से इनकार कर दिया। यह मामला 2015 में विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव में कथित तौर पर तेलुगू देशम पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए 50 लाख रुपये नकद देने की पेशकश का है। इस पुराने मामले में मुख्यमंत्री नायडू के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का निर्देश देने की मांग वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक अल्ला रामकृष्ण रेड्डी की थी।

उन्होंने एक रिट याचिका दायर करने के अलावा इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के नौ दिसंबर 2016 के फैसले को भी चुनौती थी। न्यायमूर्ति सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं। इसके बाद अदालत की अनुमति पर याचिकाकर्ता ने अपनी याचिकाएं को वापस ले ली। आरोप है कि एमएलसी एल्विस स्टीफेंसन को विधायक को एमएलसी चुनाव में तेलुगु देशम पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए 50 लाख रुपये नकद देने की पेशकश की गई थी। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के विधायक रेड्डी ने तब विशेष न्यायाधीश के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी और मामले में श्री नायडू को आरोपी बनाने की मांग की थी।

इस सनसनीखेज मामले को 2015 में ‘कैश-फॉर-वोट’ घोटाले के रूप में भी जाना जाता था। श्री रेड्डी ने हैदराबाद में भ्रष्टाचार विरोधी शाखा की विशेष अदालत से शिकायत की थी कि ‘कैश फॉर वोट घोटाले’ में भ्रष्टाचार विरोधी शाखा की पहली रिपोर्ट में नायडू का नाम 22 बार आया था, लेकिन जांच एजेंसी ने उन्हें आरोपी के रूप में नामित नहीं किया। हैदराबाद की भ्रष्टाचार विरोधी शाखा अदालत के मुख्य विशेष न्यायाधीश ने 29 अगस्त 2016 को तेलंगाना की भ्रष्टाचार विरोधी शाखा को मामले की जांच करने और अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। हालांकि, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने नायडू को बड़ी राहत देते हुए शिकायत और भ्रष्टाचार विरोधी शाखा अदालत के आदेश को खारिज कर दिया। तब उच्च न्यायालय ने कहा था कि रेड्डी को उक्त मामले में नायडू के खिलाफ जांच की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह न तो पीड़ित पक्ष नहीं हैं और न किसी भी तरह से मामले से संबंधित हैं।