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‘शिमला विकास योजना 2041’ को उच्चतम न्यायालय की हरी झंडी, एनजीटी के आदेश रद्द

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के कुछ आदेशों को रद्द करते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार की ‘शिमला विकास योजना 2041’ को शर्तों के साथ गुरुवार को हरी झंडी दे दी। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि विकास की आवश्यकता को संतुलित करने के साथ पर्यावरण और पारिस्थितिक चिंताओं को ध्यान में रखकर पर्याप्त सुरक्षा उपाय ढूंढते हुए शिमला विकास योजना 2041 को लागू करने की अनुमति दी जाती है। पीठ ने कहा कि विभिन्न विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्टों और पर्यावरण एवं पारिस्थितिक पहलुओं सहित विभिन्न पहलुओं के संबंध में किए गए अध्ययनों पर विचार करने के बाद जून 2023 में विकास योजना को अंतिम रूप दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कानून बनाने के लिए प्रतिनिधि की शक्तियों का अतिक्रमण करने और ऐसी शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के आदेशों को रद्द कर दिया। हालाँकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने विकास योजना पर सूक्ष्म विवरणों पर विचार नहीं किया और ‘प्रथम दृष्टया विचार करने पर’ उसने पाया कि पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं। पीठ ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर बल देते हुए कहा कि जो क्षेत्र विशेष रूप से कार्यपालिका या विधायिका के तहत है, उसके संबंध में कार्यपालिका को निर्देश या सलाह देना न तो कानूनी होगा और न ही उचित होगा।

शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘अदालत को कार्यपालिका, विधायिका या अधीनस्थ विधायिका को सौंपे गए कार्यों को हड़पने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अदालत संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत कार्यपालिका की नियम बनाने की शक्ति पर पर्यवेक्षी भूमिका भी नहीं निभा सकती है। एनजीटी ने 2017 से कई निर्देश जारी किए थे। उनमें कहा गया था कि शिमला योजना क्षेत्र के भीतर मुख्य, गैर-प्रमुख, हरित और ग्रामीण क्षेत्रों में अनियोजित और अंधाधुंध विकास ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी से संबंधित गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।

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