सीमा पर दोहरे खतरे को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी : राजनाथ
नयी दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि सीमाओं पर दोहरे खतरे और दुनिया भर में रण कौशल के बदलते आयामों के मद्देनजर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भारत के लिए विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन गई है। सिंह ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पूर्व सैनिकों के एक थिंक-टैंक और एक मीडिया संगठन द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर आयोजित रक्षा संवाद के दौरान यह बात कही। रक्षा मंत्री ने मजबूत और आत्मनिर्भर सेना को संप्रभु राष्ट्र की रीढ़ बताया, जो सीमाओं की रक्षा के साथ साथ देश की सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि सशस्त्र बल विदेशी हथियारों और उपकरणों पर निर्भर न रहें। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि असली शक्ति ‘आत्मनिर्भर’ होने में निहित है और आपात स्थिति उत्पन्न होने पर इसका विशेष महत्व होता है।
सिंह ने प्रौद्योगिकी द्वारा ऋण कौशल के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने स्वदेशी अत्याधुनिक हथियारों और प्लेटफार्मों को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया जो नई और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए सशस्त्र बलों को सक्षम बनाते हैं। रक्षा मंत्री ने कहा, “आज अधिकांश हथियार इलेक्ट्रॉनिक-आधारित प्रणालियां हैं, जो शत्रुओं के समक्ष संवेदनशील जानकारी प्रकट कर सकते हैं। चूंकि आयातित उपकरणों की कुछ सीमाएँ हैं, हमें इसके दायरे से आगे जाने और उत्कृष्ट प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता अर्जित करने की आवश्यकता है। नवीनतम हथियार/उपकरण हमारे सैनिकों की बहादुरी के समान ही महत्वपूर्ण हैं। यदि भारत वैश्विक स्तर पर एक सैन्य शक्ति बनना चाहता है, तो रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर होने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं है।
‘आत्मनिर्भरता’ के लाभों को गिनाते हुए श्री सिंह ने कहा कि इससे न केवल आयात पर खर्च कम होगा, बल्कि असैन्य क्षेत्र में भी इससे कई मोर्चों पर फायदा होगा। उन्होंने दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी विकसित करने की अपील की, जो रक्षा क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के अतिरिक्त लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार लायेगी। रक्षा मंत्री ने मजबूत रक्षा इकोसिस्टम बनाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख किया, जो न केवल घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि मित्र देशों की सुरक्षा आवश्यकताओं को भी पूरा करता है।
सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में रक्षा औद्योगिक गलियारे पर मिशन मोड में काम चल रहा है और अब तक लगभग 1,700 हेक्टेयर भूमि के 95 प्रतिशत का अधिग्रहण किया जा चुका है। इनमें से 36 उद्योगों और संस्थानों को करीब 600 हेक्टेयर जमीन आवंटित की जा चुकी है। अब तक 16,000 करोड़ रुपये से अधिक के अनुमानित निवेश मूल्य के साथ 109 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। यूपीडीआईसी में विभिन्न संस्थाओं द्वारा अब तक लगभग 2,500 करोड़ रुपये का कुल निवेश किया जा चुका है। इस गलियारे में न केवल कलपुर्जे बनाए जाएंगे बल्कि ड्रोन और मानव रहित यान, इलेक्ट्रॉनिक युद्धकला, विमान और ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण भी होगा।
रक्षा मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार के प्रयासों से वित्त वर्ष 2022-23 में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का रक्षा उत्पादन और लगभग 16,000 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है। उन्होंने विश्वास जताया कि रक्षा निर्यात शीघ्र ही 20,000 करोड़ रुपये के स्तर को पार कर लेगा। उन्होंने कहा, “हम 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के प्रधानमंत्री के विजन को साकार करने के लिए एक अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहे हैं। इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से शक्तिशाली और पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत बनाना है, जो एक शुद्ध रक्षा निर्यातक भी हो।
इस अवसर पर यूपीडीआईसी के मुख्य नोडल अधिकारी एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया (सेवानिवृत्त), सशस्त्र बलों और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के अधिकारी तथा उद्योग एव शिक्षा जगत के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।