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प्रधानमंत्री ने दिनकर की जयंती पर श्रद्धांजलि दी

नयी दिल्ली,

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा,“ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को उनकी जयंती पर सादर नमन। देश और समाज को राह दिखाने वाली उनकी कविताएं हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी। ” श्री मोदी ने 2015 के एक भाषण में कहा था, “ दिनकर जी का पूरा साहित्‍य खेत और खलिहान से निकला है। गांव और गरीब से निकला है और बहुत सी साहित्यिक-रचनायें ऐसी होती हैं जो किसी न किसी को तो स्‍पर्श करती हैं, कभी कोई युवा को स्‍पर्श करे, कभी बड़ों को स्‍पर्श करे, कभी पुरुष को स्‍पर्श करे, कभी नारी को स्‍पर्श करे, कभी किसी भू-भाग को और किसी घटना को स्‍पर्श करे। बहुत कम ऐसी रचनाएं होती हैं, जो वृद्धजनों को स्‍पर्श करती हों। जो कल, आज और आने वाले कल को भी स्‍पर्श करती हैं। वे न सिर्फ उसको पढ़ने वाले को स्‍पर्श करती हैं, लेकिन उसकी गूंज आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्‍पर्श करने का सामर्थ्‍य रखती हैं। दिनकर जी कि ये सौगात, हमें वह ताकत देती है।”


रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिपूर्ण संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के कारण असीम लोकप्रियता मिली। उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ नाम से विभूषित किया गया। दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1978 को बिहार के बेगूसराय जिले के ग्राम सिमरिया में हुआ था। हिन्दी के एक प्रमुख लेखक राष्ट्रकवि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छांह, मिर्च का मज़ा और सूरज का ब्याह प्रमुख हैं। दिनकर को उनके काव्यसंग्रह ‘उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात वह मुख्य रूप से गद्य सृजन की ओर उन्मुख हो गए। उन्होंने स्वयं कहा भी है, “सरस्वती की जवानी कविता है और उसका बुढ़ापा दर्शन है।” राजनीति से जुड़े रहने के कारण उनके गद्य में तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य तथा राजनेताओं की प्रवृत्तियों का परिचय प्राप्त होता है। उनकी पुस्तक ‘संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ’ में समकालीन साहित्यकारों के साथ-साथ राजनेताओं के संस्मरण भी संकलित हैं। दिनकर का 24 अप्रैल 1972 को निधन हुआ था।

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