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सेंथिल बालाजी की जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं का निपटारा

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के मंत्री के पद से सेंथिल बालाजी के इस्तीफे पर संज्ञान लेते हुए सोमवार को ‘नकदी के बदले नौकरी’ घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में उन्हें दी गई जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं का निपटारा कर दिया। मामले में एक गवाह ने आरोप लगाया था कि श्री बालाजी मुकदमे को प्रभावित करने के लिए अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिसके चलते उनकी जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका दायर की गई थी। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी उनकी जमानत के आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए ऐसी ही याचिका दायर की थी। दोनों याचिकाओं को आज न्यायालय ने बंद कर दिया।

न्यायालय ने पिछले सप्ताह बालाजी को आगाह किया था कि उन्हें अपने पद और स्वतंत्रता में से किसी एक को चुनना होगा, साथ ही चेतावनी दी थी कि अगर वह मंत्री बने रहे तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी। इस कड़ी चेतावनी के बाद बालाजी ने 27 अप्रैल की देर रात अपना इस्तीफा दे दिया। आज की सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति अभय एस ओका और ए.जी. मसीह की बेंच से अनुरोध किया कि बालाजी को मामले के लंबित रहने तक मंत्री पद पर वापस आने से रोकने के लिए एक शर्त लगाई जाए।

सॉलिसिटर मेहता ने बताया कि अरविंद केजरीवाल के मामले में भी ऐसी ही शर्तें लगाई गई थीं। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह की पाबंदी के बिना बालाजी जल्द ही मंत्री पद पर वापस आ सकते हैं, खासकर तब जब जस्टिस ओका 24 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं जिससे न्यायपालिका और जांच एजेंसियां ‘​हंसी का पात्र’ बन सकती हैं। हालांकि जस्टिस ओका ने सुझाव दिया कि अगर बालाजी फिर से पदभार संभालते हैं तो जमानत रद्द करने के लिए एक नया आवेदन दायर किया जा सकता है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि बालाजी का राज्य सरकार पर काफी प्रभाव था। उन्होंने कहा कि जेल में रहने के दौरान भी बालाजी बिना किसी विभाग के मंत्री बने रहे। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि बालाजी का प्रभाव भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत संबंधित अपराध में अभियोजन को बाधित कर सकता है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि बालाजी का प्रभाव भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध के अभियोजन को बाधित कर सकता है। शीर्ष न्यायालय ने माना कि चूंकि बालाजी पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं इसलिए आवेदनों पर आगे बढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।

एसजी ने न्यायालय से मामले के शीघ्र निपटारे का निर्देश देने का भी आग्रह किया जिसमें बालाजी द्वारा जानबूझकर की गई देरी का आरोप लगाया गया। हालांकि बालाजी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस दावे का खंडन किया। पीठ ने मुकदमे की कार्रवाई में तेजी लाने के संबंध में कोई निर्देश पारित करने से परहेज किया। यह मामला 23 अप्रैल का है जब सर्वोच्च न्यायालय ने बालाजी को चेतावनी दी थी कि यदि वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने में विफल रहे तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाएगी। उन्हें निर्णय लेने के लिए 28 अप्रैल तक का समय दिया गया था जिसके कारण कल उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

पिछली सुनवाई में न्यायालय ने जमानत मिलने के तुरंत बाद बालाजी को फिर से मंत्री बनाए जाने पर कड़ी असहमति जताई थी खास तौर पर इस बात को देखते हुए कि उन्होंने लोगों को शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर किया था और इस अपराध में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। न्यायमूर्ति ओका ने इस बात पर जोर दिया कि जमानत मामले की योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि केवल लंबे समय तक कैद और मुकदमे में देरी की चिंताओं के कारण दी गई थी जिससे अनुच्छेद 21 के अधिकारों का आह्वान हुआ। न्यायाधीश ने हाल ही में शीर्ष न्यायालय द्वारा धन शोधन मामलों में व्यक्त किए गए जमानत मानकों के राजनीतिक दुरुपयोग के बारे में भी आशंका व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बालाजी की कार्यालय में तेजी से वापसी ने न्यायालय के इरादों को कमजोर कर दिया।

सितंबर 2024 में बालाजी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला पाए जाने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने जून 2023 से उनकी लंबी हिरासत और जल्द सुनवाई की असंभवता का हवाला देते हुए उन्हें जमानत दे दी। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि कड़ी जमानत शर्तें लगाने वाले विशेष कानूनों में त्वरित सुनवाई की आवश्यकताओं को शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद बालाजी ने 29 सितंबर, 2024 को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व में तमिलनाडु सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। दो दिसंबर 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत के बाद बालाजी की मंत्री के रूप में बहाली पर आश्चर्य व्यक्त किया लेकिन जमानत आदेश को वापस लेने से इनकार कर दिया।

ईडी ने 13 दिसंबर को दायर एक हलफनामे में उल्लेख किया कि बालाजी को उनकी रिहाई के 48 घंटे के भीतर बिजली, निषेध और उत्पाद शुल्क मंत्री के रूप में बहाल कर दिया गया था। ईडी ने यह भी बताया कि अपने आठ महीने के कारावास के दौरान वह बिना विभाग के मंत्री रहे और उच्च न्यायालय द्वारा उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई से एक दिन पहले ही इस्तीफा दे दिया। हलफनामे में गवाहों पर बालाजी के प्रभाव पर चिंता जताई गई जिनमें से कई सरकारी कर्मचारी थे जिन्होंने परिवहन मंत्री के रूप में उनके अधीन काम किया था। ईडी ने उनकी रिहाई के बाद मुकदमे में देरी के उदाहरणों का भी हवाला दिया जिसमें एक फोरेंसिक विशेषज्ञ से लंबी जिरह भी शामिल है। बीस दिसंबर-2924 को शीर्ष न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को बालाजी के खिलाफ लंबित मामलों, इसमें शामिल गवाहों की संख्या और उनमें सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के बीच अंतर करने के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया।