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नासा के कैमरों ने ली नेपच्यून के छल्लों की स्पष्ट तस्वीरें

लॉस एंजेल्स।  अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से सुदूर नेपच्यून (वरुण) ग्रह के छल्लों की अब तक की सबसे साफ और स्पष्ट तस्वीरें खींचने में कामयाबी हासिल कर ली है। नासा की ओर से बुधवार को जारी बयान में कहा गया कि वेब ने न केवल नेपच्यून की 30 साल से अधिक समय के बाद अब तक की सबसे साफ सुथरी तस्वीरें खींची हैं बल्कि इस बर्फीले दीर्घकाय को एक नयी रोशनी में खोलकर रख दिया है। नासा वेब टेलीस्कोप हैंडल से किये गये ट्वीट कहा गया,“ हे नेपच्यून, क्या तुमारे चारों ओर छल्ले हैं। 30साल से अधिक के समय में यह नेपच्यून के छल्लों की अब तक की ली गयीं सबसे साफ तस्वीरें हैं। यह पहली बार है जब इंफ्रारेड रोशनी में इसकी तस्वीरें ली गयीं हैं। जिसमें नेपच्यून के चारों और फैसले धूल के बैंड, छल्ले और चांद भी साफ नजर आ रहे हैं। नासा की ओर से जारी बयान में नेपच्यून सिस्टम के विशेषज्ञ और अंतरविषयक वैज्ञानिक हैदी हमल ने कहा “ लगभग तीन दशक पहले 1846 में नेपच्यून को खोजा गया था। पिछली बार हमें इसकी जो तस्वीरें मिलीं थीं वे काफी धुंधली थी और हमनें इसके चारों और धुंधले से छल्ले देखे थे। यह पहली बार है जब हम इसे इंफ्रारेड रोशनी में देख रहे हैें। खोज के समय से ही नेपच्यून खोजकर्ताओं को कौतुहल में डाले हुए है। यह सूर्य से धरती की दूरी से कोई 30 गुना दूरी पर स्थित है। नेपच्यून पर हाइड्रोजन और हीलियम से अधिक भारी तत्वों की भरमार है जबकि गैस के भीमकायों बृहस्पति और शनि में गैस की अधिकता है। नेपच्यून आंतरिक रूप से जिन तत्वों से मिलकर बना है उस कारण इसको बर्फीले भीमकाय के रूप में जाना जाता है । बृहस्पति और शनि की तुलना में नेपच्यून अधिक भारी तत्वों जैसे हाईड्रोजन और हीलियम से बना है। नासा द्वारा जारी बयान के अनुसार इंफ्रा रेड रोशनी में यह नीला नहीं दिखायी देता है क्योकि मीथेन गैस लाल और इंफ्रारेड रोशनी को बहुत मजबूती के साथ इस तरह से अवशोषित कर लेती है कि इंफ्रारेड वेवलैंथ के पास नेपच्यून काफी काला दिखायी देता है , उन जगहों को छोड़कर जहां ऊंचाई अधिक होने के कारण बादल मौजूद हैं। यह मीथेन के बर्फीले बादल तेज रोशनी में लकीर और धब्बों के रूप में दिखायी देते हैं जो सूर्य की रोशनी को मीथेन गैस द्वारा अवशोषित करने से पहले ही परावर्तित कर देती है। इससे पहले हब्बल अंतरिक्ष टेलीस्कोप और डब्ल्यू एम केक प्रयोगशाला द्वारा भी कई वर्षों से तेजी से बनते बादलों के रूप को तस्वीरों में रिकॉर्ड किया जा रहा था।

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