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खुशहाल, स्वस्थ, समृद्ध विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए काम का आग्रह किया नायडू ने

नयी दिल्ली।  उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने प्रशासन में स्थानीय भाषाओं का उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि शासन का अंतिम उद्देश्य लोगों को सशक्त बनाना और न्यूनतम सरकार की ओर बढ़ना होना चाहिए। नायडू ने गुरुवार को यहां भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के 48वें एडवांस्ड प्रोफेशनल प्रोग्राम इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (एपीपीपीए) के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन की सफलता मेहनतकश जनता को विकास की प्रक्रिया में समान रुप से शामिल करने में निहित है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन की कुंजी समावेशिता, प्रौद्योगिकी का उपयोग और उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी पारदर्शिता को बढ़ावा देती है और जवाबदेही नैतिक मानक वैधता प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि दोनों को मिला कर एक नयी राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत हो सकती है। नायडू ने कहा कि समावेशी और उत्तरदायी शासन के लिए लोगों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। सुधार केवल सरकार द्वारा शुरू किए जाते हैं, लेकिन वास्तव में तभी फलते-फूलते हैं जब लोग अपने देश के भविष्य के लिए सक्रिय रूप से काम करते हैं।


उपराष्ट्रपति ने प्रत्येक भारतीय से आग्रह किया कि अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष में प्रवेश के लिए एक खुशहाल, स्वस्थ, समृद्ध और विकसित राष्ट्र के निर्माण के उद्देश्य से काम करें। उन्होंने कहा कि भारत आगे बढ़ रहा है और अपने अतीत को छोड़कर तथा आशा की ओर यात्रा शुरू कर रहा है।  नायडू ने औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकलने की आवश्यकता पर बल दिया और प्रशासकों को अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए लोगों की भाषा का उपयोग करने के लिए कहा। उन्होंने कहा, “आपको लोगों के साथ उनकी भाषा में बातचीत करनी चाहिए।” सार्वजनिक जीवन में गिरते मानकों की प्रवृत्ति को रोकने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासक और नेता को ईमानदारी और नैतिकता में उदाहरण स्थापित करना चाहिए।

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