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समितियों की कार्य प्रणाली को लचीला बनाना चाहिए : बिरला

नयी दिल्ली, 

लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने रविवार को कहा कि समय के साथ लोक लेखा समिति (पीएसी) की प्रासंगिकता बढ़ी है और समिति से लोगों की आशाएं एवं अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं, इसलिए यह पीएसी की जिम्मेदारी है कि वह अपनी प्रक्रियाओं तथा प्रक्रियाओं को लचीला बनाए। श्री बिरला ने यहां संसद की पीएसी के शताब्दी समारोह में अपने समापन भाषण में यह बात कही। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गत चार दिसंबर को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में पीएसी के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया था। यह समारोह आज संपन्न हो गया। समापन समारोह में श्री बिरला के अलावा राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश और संसद की पीएसी के सभापति अधीर रंजन चौधरी समापन सत्र में शामिल हुए। केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य, राज्य विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारी, राज्यों की लोक लेखा समितियों के सभापति और अन्य विशिष्टजन भी समारोह के समापन सत्र में शामिल हुए। श्री बिरला ने कहा कि समय के साथ पीएसी की प्रासंगिकता बढ़ी है और समिति से लोगों की आशाएं और अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं। इसलिए, यह लोक लेखा समिति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी प्रक्रियाओं और प्रक्रियाओं को फ्लैक्सिब्ल बनाए। उन्होंने कहा कि पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के लाभ और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए समिति को कार्यपालिका को देश के विकास के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए और सरकार के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए। लोक सभा अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों का एक साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाना चाहिए जहां ऐसी समितियां अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकें तथा अपनी सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की निगरानी भी कर सकें। उन्होंने सुझाव दिया कि संसदीय समितियों को लोगों से सीधे बातचीत करनी चाहिए और उनकी राय लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों के साथ जितनी अधिक बातचीत होगी, समिति की सिफारिशें भी उतनी ही प्रभावी और सार्थक होंगी। पीएसी को और मजबूत करने तथा भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों के बीच बेहतर समन्वय पर जोर देते हुए, श्री बिरला ने सुझाव दिया कि सभी पीएसी के सभापतियों की एक समिति होनी चाहिए और उस समिति को लोक लेखा समितियों के कामकाज पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और इनके कार्यकरण को अधिक प्रभावी बनाने पर विचार-मंथन करना चाहिए। इस समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट या सुझावों पर पीठासीन अधिकारी चर्चा कर सकते हैं ताकि पीएसी को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और जनता के लिए लाभकारी बनाया जा सके। वर्तमान समय में पीएसी के कार्य के व्यापक दायरे के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के साधनों का व्यापक उपयोग किया जाए ।


पीएसी के निष्पक्ष कामकाज की परंपरा की सराहना करते हुए श्री बिरला ने कहा कि हम सब को सामूहिक रूप से प्रयास करने चाहिए कि इस परंपरा को न केवल बनाए रखें बल्कि इसे और मजबूत भी करें। राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए। लोक लेखा समितियों के क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि लोक लेखा समितियों की क्षमता में सुधार करने से वे जवाबदेही के साधन के रूप में और मजबूत होंगी। समावेशी शासन की दिशा में संसदीय समितियों की भूमिका के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए, श्री बिरला ने सुझाव दिया कि उन्हें नए क्षेत्रों में विकास की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए। इससे सरकारों को विकास के लिए कार्य योजना तैयार करने में मदद मिलेगी। वर्ष 1921 से लोक लेखा समितियों के इतिहास और भूमिका का उल्लेख करते हुए, राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने इस बात पर जोर दिया कि ऑडिट पैरा के समयबद्ध तरीके से निपटान के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने निरर्थक कानूनों की समीक्षा की प्रक्रिया में इन समितियों की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि इससे हमारी कानूनी संरचना हमारे समय की बदलती जरूरतों के अनुरूप हो जाएगी। उन्होंने यह टिप्पणी की कि कानून बनाने में देरी होने पर देश का सामाजिक आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है जिससे संसदीय समितियों, विशेष रूप से लोक लेखा समितियों पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी आती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित कानूनों की निरंतर जांच करें। समितियों से निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह करते हुए, उन्होंने बेहतर बुनियादी सुविधाएं और संसाधन प्रदान किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि वे कार्यपालिका की जवाबदेही प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करने में सक्षम हो सकें।


लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही संसदीय लोकतंत्र का आधार है। इसलिए, सार्वजनिक व्यय पर संसद का नियंत्रण केवल देश के शासन को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि के लिए मतदान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि संसद यह भी सुनिश्चित करती है कि व्यय विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए और इसके द्वारा अनुमोदित नीतियों के अंतर्निहित उद्देश्य को हासिल किया जाए। समिति के विचार-विमर्श पर संतोष व्यक्त करते हुए, श्री चौधरी ने आशा व्यक्त की कि लोक लेखा समिति आने वाले वर्षों में लोकतंत्र को सफल बनाने एवं लोकतांत्रिक विधानमंडलों के लिए उच्च मानक स्थापित करने के लिए और अधिक निष्ठा तथा ईमानदारी के साथ काम करेगी। इस अवसर पर, श्री ओम बिरला ने ‘भारत के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (1921-2021)’ संबंधी शताब्दी मोनोग्राफ भी जारी किया। सत्र का समापन करते हुए श्री अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकारी खर्च पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखने वाली लोक लेखा समिति अपनी निष्पक्षता, दृढ़ता और बारीकी से जांच करने के लिए सुविख्यात है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि शताब्दी समारोह के दौरान किया गया विचार-विमर्श देश की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने में उपयोगी होगा।

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