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उधारी सीमा विवाद पर केरल को नहीं मिली राहत, संविधान पीठ करेगा फैसला

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से रकम उधार लेने की राज्य सरकारों की सीमा और इससे जुड़े कुछ अन्य पहलुओं पर केरल सरकार की ओर से उठाए गए सवालों वाली याचिका सोमवार को संविधान पीठ के समक्ष विचार करने के लिए भेजने का फैसला किया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर मूल मुकदमे में केरल को किसी भी तरह की अंतरिम राहत से इनकार कर दिया, क्योंकि केंद्र सरकार ने इसके लिए 13,608 करोड़ रुपये के अतिरिक्त प्रावधान किए थे।

केंद्र ने पहले तर्क दिया था कि वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2023-24 में केरल को अतिरिक्त उधार देना न तो विवेकपूर्ण है और न ही राज्य सरकार के हित में है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि जब राज्य सरकार द्वारा उधार लेने की सीमा का अधिक उपयोग किया जाता है तो अगले वर्ष इसमें पर्याप्त कमी हो सकती है। केरल सरकार ने अपने मुख्य सचिव के माध्यम से मूल मुकदमा दायर किया था, जिसमें राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि केंद्र उधार लेने और अपने स्वयं के वित्त को विनियमित करने की उसकी शक्ति में हस्तक्षेप कर रहा है।

याचिका में केरल ने यह भी दावा किया कि उसके पास कल्याणकारी योजनाओं, राज्य के कर्मचारियों और राज्य के अन्य लाभार्थियों के वेतन, पेंशन और भविष्य निधि का बकाया चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। उधर, केंद्र ने पीठ के समक्ष दावा किया कि केरल की वित्तीय इमारत में कई दरारें हैं। केंद्र ने 2021-22 के लिए सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में केरल में राजस्व घाटा 3.17 प्रतिशत दिखाने के लिए रिकॉर्ड आंकड़े लाए हैं, जो सभी राज्यों के औसत 0.46 फीसदी और राजकोषीय घाटे की दर से अधिक है। पूरे राज्य का औसत 2.80 प्रतिशत की तुलना में केरल के लिए 4.94 फीसदी होगा।