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भुखमरी रिपोर्ट को भारत ने किया खारिज

नयी दिल्ली।  भारत ने वैश्विक भुखमरी रिपोर्ट 2020 में देश की स्थति संबंधी आकलन को कड़ी आलोचनाओं के साथ खारिज करते हुए देश की छवि खराब करने का एक कुटिल प्रयास करार दिया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भारत में आंगनवाड़ी और गरीबों के लिए मुफ्ता अनाज कार्यक्रम जैसे विशाल कार्यक्रम का हवाले देते हुए एक कड़ा बयान जारी करते हुए शनिवार को जारी इस रिपोर्ट पर कहा, ‘ भारत की छवि को धूमिल या कलंकित करने के लिए निरंतर किया जा रहा कुटिल प्रयास एक बार फिर स्‍पष्‍ट नजर आ रहा है जिसमें देश को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में दिखाने का प्रयास है जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है।” सरकार ने पिछले वर्ष की रिपोर्ट की भी कड़ी आलोचना की थी। मंत्रालय ने कहा है, “ ऐसा प्रतीत होता है कि गलत सूचना फैलाना ही हर साल जारी किए जाने वाले ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ का विशिष्‍ट उद्देश्‍य है। ” इस रिपोर्ट को लेकर पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम ने प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करने वाला ट्वीट किया है और कहा है कि प्रधानमंत्री को भूख और बच्चों के कुपोषण की समस्यओं के समाधान पर ध्यान देना चाहिए । यह रिपोर्ट आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्ट हंगर हिल्फे जारी करती है। शनिवार को जारी 2022 की इस रिपोर्ट में भारत को 121 देशों में काफी नीचे 107वीं रैकिंग दी गई है। पिछले साल भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर रखा गया था। मंत्रालय ने कहा है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में शामिल अल्पपोषण के अलावा तीन अन्य संकेतक मुख्य रूप से बच्चों से संबंधित हैं जिनमें बच्चों के विकास में कमी, किसी अंग का कमजोर रह जाना और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर। मंत्रालय का कहना है कि ये संकेतक भूख के अलावा पेयजल, स्वच्छता, आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन के उपयोग जैसे विभिन्न अन्य कारकों के जटिल संयोग के परिणाम हो सकते हैं।

बयान में कहा गया है, “बच्चों के मुख्य रूप से स्वास्थ्य संकेतकों से संबंधित संकेतकों के आधार पर भूख की गणना करना न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत। मंत्रालय का कहना है कि अल्‍पपोषित आबादी के अनुपात (पीओयू) का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक अनुमान दरअसल सिर्फ 3000 प्रतिभागियों के बहुत छोटे नमूने पर किए गए एक जनमत संग्रह पर आधारित है। मंत्रालय ने कहा है, ‘ एफआईईएस के माध्यम से भारत जैसे विशाल देश के लिए एक छोटे से नमूने से एकत्र किए गए डेटा का उपयोग भारत के लिए पीओयू मूल्य की गणना करने के लिए किया गया है जो न केवल गलत और अनैतिक है, बल्कि यह स्पष्ट पूर्वाग्रह का भी संकेत देता है। भारत ने जुलाई 2022 में एफएओ के साथ एफआईईएस सर्वेक्षण मॉड्यूल के आंकड़ों के आधार पर ऐसे अनुमानों का उपयोग नहीं करने का मुद्दा उठाया गया था । सरकार ने कहा है कि इस रिपोर्ट लिए सर्वे में प्रतिभागियों से पूछे गए कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं कि “पिछले 12 महीनों के दौरान, क्या कोई ऐसा समय था, जब पैसे या अन्य संसाधनों के अभाव में: आप इस बात के लिए चिंतित थे कि आपके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होगा? क्या आपने जितना सोचा था, उससे कम खाया?

भारत का कहना है , ‘यह स्पष्ट है कि इस तरह के प्रश्न सरकार द्वारा पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने और खाद्य सुरक्षा के आश्वासन के बारे में प्रासंगिक जानकारी के आधार पर तथ्यों की पड़ताल नहीं करते हैं। मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है जिसमें मार्च 2020 से लगभग 80 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त चावल/गेहूं वितरित किया जा रहा है। केंद्र ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ( पीएम-जीकेएवाई) के तहत लगभग 1121 लाख टन खाद्यान्न आवंटित किया है, जो खाद्य सब्सिडी में तकरीबन 3.91 लाख करोड़ रुपये के बराबर है। इस योजना को दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया गया है। आंगनबाड़ी सेवाओं के तहत कोविड-19 महामारी के बाद से, 6 वर्ष तक के लगभग 7.71 करोड़ बच्चों और 1.78 करोड़ गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण प्रदान किया गया। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत 1.5 करोड़ से अधिक पंजीकृत महिलाओं में से प्रत्येक को उनके पहले बच्चे के जन्म पर गर्भावस्था और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान पारिश्रमिक सहायता एवं पौष्टिक भोजन के लिए प्रत्येक को 5000 रुपये प्रदान किए गए।

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