बंगलादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया का निधन

ढाका। बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और तीन दशकों से अधिक समय तक देश की राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व रहीं बेगम खालिदा जिया का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार को यहां निधन हो गया। भारत के वर्तमान पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में 1945 में जन्मी बेगम खालिदा जिया गत अगस्त में 80 वर्ष की हुई थीं। वह हृदय और फेफड़ों के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं। उन्होंने ढाका के एवरकेयर अस्पताल में सुबह छह बजे अंतिम सांस ली, जहाँ पिछले पांच हफ्तों से उनका इलाज चल रहा था। बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए एक बयान में कहा, “बीएनपी अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया का आज सुबह 6:00 बजे, फज्र की नमाज के कुछ समय बाद निधन हो गया।” उनका अंतिम संस्कार बुधवार को ढाका के मानिक मियां एवेन्यू में किया जाएगा। बेगम जिया 1991 से 1996 तक और फिर 2001 से 2006 तक देश की प्रधानमंत्री रहीं। वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से इस पद को संभालने वाली देश की पहली महिला थीं। उनके पति जनरल जिया उर रहमान एक स्वतंत्रता सेनानी और देश के पूर्व सैन्य शासक थे। इसी महीने की शुरुआत में उनके बेटे तारिक रहमान लंबे समय के स्वघोषित निर्वासन के बाद फरवरी 2026 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर और अपनी बीमार मां के पास रहने के लिए 25 दिसंबर को ब्रिटेन से वापस लौटे थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि भारत बंगलादेश के बीच संबंधों में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। प्रधानमंत्री ने ‘एक्स’ पर लिखा, “बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया के निधन के बारे में जानकर गहरा दुख हुआ। उनके परिवार और बंगलादेश के सभी लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं। बंगलादेश के विकास और भारत-बांग्लादेश संबंधों में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।” श्री मोदी ने 2015 में ढाका में उनके साथ हुई अपनी मुलाकात को भी याद किया। बंगलादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने खालिदा जिया के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि उनके निधन से ‘देश ने एक अनुभवी और संरक्षक राजनेता को खो दिया है।’ उन्होंने बेगम जिया के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा, “अपने अडिग नेतृत्व के माध्यम से उन्होंने देश को बार-बार अलोकतांत्रिक परिस्थितियों से मुक्त कराया।
मोहम्मद यूनुस ने पूर्व प्रधानमंत्री को याद करते हुए कहा कि बेगम खालिदा जिया केवल किसी राजनीतिक दल की नेता नहीं थीं। वह बंगलादेश के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व करती थीं। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र की स्थापना, बहुदलीय राजनीतिक संस्कृति और जनता के अधिकारों के लिए उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राष्ट्रीय कल्याण को समर्पित उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा, जनता-केंद्रित नेतृत्व और उनका दृढ़ संकल्प हमेशा मार्गदर्शक रहा। निर्वासन में भारत में रह रहीं बंगलादेश अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना ने भी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, “राष्ट्र के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण था और उसे याद रखा जाएगा। उनका निधन बंगलादेश के राजनीतिक जीवन और बीएनपी के नेतृत्व के लिए एक बड़ी क्षति है। कभी खालिदा जिया की कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहीं श्रीमती हसीना ने कहा, “मैं बेगम खालिदा जिया की आत्मा की शांति और क्षमा के लिए प्रार्थना करती हूँ और उनके बेटे तारिक रहमान तथा उनके परिवार के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करती हूँ।
राजनीति पर्यवेक्षकों का मानना है कि बेगम जिया का निधन एक युग के अंत का प्रतीक है। उनके निधन से उनकी पार्टी बीएनपी को मतदाताओं की सहानुभूति का चुनावों में लाभ मिल सकता है। गौरतलब है कि अपनी लंबे समय की प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना के साथ बेगम खालिदा जिया ने बंगलादेश के राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा बनाए रखा। बंगालदेश की राजनीति की इन दो हस्तियों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने दशकों तक देश की राजनीति को आकार दिया। बेगम खालिदा जिया के निधन पर प्रतिक्रिया देते हुए बंगलादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास ने यूनीवार्ता को बताया, “यह एक युग का अंत है। हमने उनके साथ तब भी काम किया है जब वे विपक्ष में थीं।” उन्होंने बताया कि भारत ने उनके लिए तब भी रेड कारपेट बिछाया था जब वे विपक्ष में थीं और भारत दौरे पर आई थीं। उन्होंने कहा, “जो लोग कहते हैं कि हमने केवल एक ही पार्टी के साथ संबंध बनाए, वे तथ्यों से अनभिज्ञ हैं।
बेगम जिया की विरासत पर हालांकि उनके देशवासियों की राय बंटी हुई है। निर्वासित बंगलादेशी कवयित्री और लेखिका तस्लीमा नसरीन ने यूनीवार्ता को बताया, “बेगम जिया का एक साधारण गृहिणी से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर बहुत तेज़ रहा। उनके जीवन में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, सिवाय उन दो वर्षों के जो उन्होंने जेल में बिताए। लेखिका ने पूर्व प्रधानमंत्री के शासनकाल में अपनी किताबों पर लगाए गये प्रतिबंध का हवाला देते हुए पूछा, “उन्होंने ‘लज्जा’ से लेकर मेरी कई किताबों पर प्रतिबंध लगाया… क्या वे प्रतिबंध अब हटाए जाएंगे? तस्लीमा नसरीन ने भविष्यवाणी की कि उनके बेटे तारिक रहमान चुनाव जीतेंगे। उन्होंने कहा, “क्या यह हमारे लिए अच्छा होगा? मुझे नहीं पता। लेकिन कम से कम बांग्लादेश में अभी जो अराजकता दिख रही है, उसका अंत होगा। अपने शुरुआती जीवन का अधिकांश समय उन्होंने अपने पति जनरल जिया-उर रहमान की छाया में बिताया, जो सेना अधिकारी से राष्ट्रपति बने थे और जिनकी 1981 में एक तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी। उसी हिंसक घटना और बीएनपी में अचानक आए नेतृत्व के संकट ने ही उनकी पत्नी बेगम जिया को सार्वजनिक क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रेरित किया।
उस समय बहुत कम लोगों को उम्मीद थी कि वह बंगलादेशी राजनीति की कठिन दुनिया में टिक पाएंगी। यहाँ तक कि बीएनपी के वरिष्ठ नेता भी उनके नेतृत्व की क्षमता पर संदेह करते थे। तब देश की राजनीति में जनरल एचएम इरशाद का दबदबा था, जिन्होंने सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता हथिया ली थी। बेगम जिया ने 1980 के दशक में शेख हसीना के साथ जनरल इरशाद के शासन के खिलाफ विरोध का मोर्चा खोल दिया। इसके लिए दोनों नेताओं को नजरबंदी और यात्रा प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। दोनों ने औपचारिक रूप से 1990 में अल्पकालिक गठबंधन कर लिया, जो कि बंगलादेश की राजनीति और बेगम जिया के राजनीतिक जीवन में निर्णायक मोड़ साबित हुआ। अगले वर्ष, 1991 के आम चुनाव में बेगम जिया ने बीएनपी को आश्चर्यजनक जीत दिलाई और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। 1996 तक चला उनका पहला कार्यकाल राजनीतिक उथल-पुथल के बीच समाप्त हुआ, लेकिन उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सरकार ने संविधान में 13वां संशोधन पारित किया, जिसने चुनावों की निगरानी के लिए एक ‘केयरटेकर’ (कार्यवाहक) सरकार प्रणाली को संस्थागत बनाया। इसके बाद उन्होंने संसद भंग कर दी और इस्तीफा दे दिया, ताकि अगला चुनाव उसी निष्पक्ष प्राधिकरण के तहत लड़ा जा सके।
इस चुनाव में उनकी प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना की अवामी लीग सत्ता में आई, लेकिन फिर अगले ही चुनाव में 2001 में बेगम जिया ने फिर से सत्ता में वापसी की। उन्होंने रूढ़िवादी इस्लामी दलों के साथ गठबंधन कर भारी बहुमत से जीत हासिल की। इस कदम ने देश में राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों को और गहरा कर दिया। 21वीं सदी में उनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश में चरमपंथ और गहरा हो गया। आलोचकों ने उनके प्रशासन पर ढिलाई बरतने का आरोप लगाया, जिसे उनकी पार्टी हमेशा नकारती रही। अंततः 2007 में सेना समर्थित सरकार ने कार्यभार संभाला और 2008 में चुनाव हुए, जिसमें शेख हसीना फिर से सत्ता में लौटीं। इसके बाद, बेगम जिया के जीवन में कानूनी लड़ाई, कारावास, बीमारी और राजनीतिक अलगाव का लंबा दौर चला। फिर भी, वह राजनीति में एक स्थायी उपस्थिति बनी रहीं। वह समर्थकों के लिए वे राजनीति की ‘शहीद’ थीं, तो आलोचकों के लिए एक टकराववादी युग का अवशेष।
