70 वर्ष के हुए अनुपम खेर
मुंबई। बॉलीवुड के जाने-माने चरित्र अभिनेता अनुपम खेर आज 70 वर्ष के हो गए। अनुपम खेर का जन्म 07 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था। उनके पिता पुष्कर नाथ एक कश्मीरी पंडित थे और हिमाचल प्रदेश के वन विभाग में क्लर्क थे। अनुपम ने अपनी स्कूली शिक्षा शिमला के डीएवी स्कूल से की।बाद में, उन्होंने शिमला के संजौली स्थित सरकारी कॉलेज में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में भारतीय रंगमंच का अध्ययन करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। अनुपम खेर ने 1978 में नई दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक किया। इसके बाद वह रंगमंच से जुड़ गए।
80 के दशक में अभिनेता बनने का सपना लिए हुए उन्होंने मुंबई में कदम रखा।अनुपम खेर महज 37 रुपये लेकर घर से निकले थे और वो सपनों के शहर मुंबई आए थे। शुरुआती दिनों में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं उन्हे कई रातें प्लेटफार्म पर गुजारनी पड़ी थी। तीन साल तक उनके पास कोई काम नहीं था। बतौर अभिनेता उन्हें वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘आगमन’ में काम करने का मौका मिला, लेकिन फिल्म के असफल हो जाने के बाद वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके।
वर्ष 1984 में अनुपम खेर को महेश भट्ट की फिल्म ‘सारांश’ में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक वृद्ध पिता की भूमिका निभाई जिसके पुत्र की असमय मृत्यु हो जाती है। अपने इस किरदार को अनुपम ने संजीदगी के साथ निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया। साथ ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। वर्ष 1986 में उन्हें सुभाष घई की फिल्म ‘कर्मा’ में बतौर खलनायक काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे, लेकिन अनुपम खेर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।
फिल्म कर्मा की सफलता के बाद बतौर खलनायक अनुपम खेर अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। अपने अभिनय मे आई एकरूपता को बदलने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए अनुपम खेर ने अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन किया। इस क्रम में वर्ष 1989 मे प्रदर्शित सुभाष घई की सुपरहिट फिल्म ‘राम लखन’ में उन्होनें फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के पिता की भूमिका निभाई। फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।वर्ष 1989 में अनुपम खेर के सिने करियर की एक और अहम फिल्म ‘डैडी’ प्रदर्शित हुई। फिल्म में अपने भावुक किरदार को उन्होंने सधे हुए अंदाज में निभाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने दमदार अभिनय के लिए वह फिल्म फेयर समीक्षक पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
वर्ष 2003 में प्रदर्शित फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ के जरिए अनुपम खेर ने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि, फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से विफल साबित हुई।वर्ष 2005 में अनुपम खेर ने फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ का निर्माण किया। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने कई हॉलीवुड फिल्मों में भीअपने अभिनय का जौहर दिखाया है। 2000 के दशक में अनुपम ने दर्शकों की पसंद को देखते हुए छोटे पर्दे का भी रुख किया और ‘से ना समथिंग टु अनुपम अंकल’ और ‘सवाल दस करोड़ का’ बतौर होस्ट काम कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
वर्ष 2007 में अपने मित्र सतीश कौशिक के साथ मिलकर अनुपम ने करोग बाग प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले ‘तेरे संग’ का निर्माण किया। वह अपने सिने कैरियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद अनुपम नेशनल सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी बने।इसके अलावे उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में बतौर निदेशक 2001 से 2004 तक काम किया। फिल्म क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए अनुपम खेर को पद्मश्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में 550 फिल्मों में काम किया। वह आज भी जोशोखरोश के साथ फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं।