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छोटी सच्ची ज़िंदगी पर बनी फिल्में अब गायब हो गई हैं : कृतिका कामरा

मुंबई।  अभिनेत्री कृतिका कामरा का कहना है कि छोटी, सच्ची ज़िंदगी पर बनी फिल्में अब गायब हो गई हैं, उम्मीद है कि उनकी अगली फिल्म इस जॉनर को फिर से ज़िंदा करेगी। कई सालों तक पारिवारिक कहानियाँ हिंदी सिनेमा की आत्मा रही हैं। ऐसे किस्से जो रिश्तों, अपनापन और साझा भावनाओं से भरे होते थे और हर पीढ़ी के दिल को छू जाते थे। लेकिन पिछले कुछ समय में जब सिनेमा का झुकाव थ्रिलर, बायोपिक और गहरे ड्रामों की ओर बढ़ गया, तो परिवार पर आधारित सीधी-सादी, दिल को छू लेने वाली फिल्मों की कमी महसूस होने लगी। कृतिका कामरा, जो हमेशा अलग और सोचने पर मजबूर करने वाले किरदारों का चुनाव करती रही हैं, अब अपनी आने वाली फिल्म के ज़रिए उस खाली जगह को भरने की उम्मीद कर रही हैं। यह फिल्म अनुषा रिज़वी (जिन्होंने पीपली लाइव जैसी सराही गई फिल्म बनाई थी) के निर्देशन में बन रही है।

दिल्ली की पृष्ठभूमि पर आधारित यह कहानी एक साधारण परिवार की है, जो पीढ़ियों के अंतर, अपनापन और बहनापा जैसी भावनाओं को हल्के-फुल्के हास्य और सच्चाई के साथ दिखाती है। फिल्म और उसकी भावनाओं पर बात करते हुए कृतिका ने कहा,“मुझे वो छोटी, सच्ची कहानियाँ बहुत याद आती हैं जो बिना ज़्यादा दिखावे के हमारे दिल को छू जाती थीं। वो फिल्में जिनमें हँसी भी होती थी, आँसू भी और एक अपनापन भी। कहीं न कहीं, वो कहानियाँ जो परिवारों के बीच की छोटी-छोटी बातों, खाने कीi मेज़ की गपशप, और सादगी भरे पलों को दिखाती थीं। अब धीरे-धीरे गायब हो गई हैं। अनुषा के साथ यह फिल्म बनाना ऐसा लगता है जैसे उस भूली हुई दुनिया में वापस लौट रहे हों। यह फिल्म सीधी-सादी है, कहीं-कहीं मज़ेदार और सबसे ज़रूरी, इंसानी है। और मुझे लगता है आज सबको फिर वही एहसास चाहिए।

कृतिका ने कहा,“एक समय था जब हमारी फिल्मों में साधारण चीज़ों की भी ख़ूबसूरती दिखाई जाती थी – भाई-बहन की बातचीत, किसी छोटे से प्यार भरे पल या सोच में डूबे एक दृश्य में भी कहानी मिल जाती थी। वो फिल्में बड़े सेट्स या चमक-दमक पर नहीं, बल्कि सच्चाई पर टिकी होती थीं। बड़े, भव्य सिनेमा की अपनी जगह है, लेकिन इन छोटी, दिल से जुड़ी कहानियों की कमी अब साफ़ महसूस होती है। उम्मीद है हमारी फिल्म उस पुराने अपनापन को वापस लाएगी – वही एहसास जो घर जैसा लगता है। अनुषा रिज़वी के निर्देशन में बन रही यह फिल्म हास्य, गर्मजोशी और सोच को एक साथ जोड़ती है।बिल्कुल वैसे ही जैसे भारत की पुरानी, प्यारी पारिवारिक फिल्मों में देखने को मिलता था। कृतिका कामरा को उम्मीद है कि यह कहानी हर पीढ़ी के दर्शकों के दिल को छुएगी और सिनेमा में फिर से उस सादगी और सच्चाई को लौटाएगी जो कभी हिंदी फिल्मों की पहचान हुआ करती थी।