रिहाई में देरी, उप्र को देना पड़ा लाख रुपए मुआवजा
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के जमानती आदेश का पालन करने में करीब एक माह की देरी के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को पांच लाख रुपए का मुआवजा देना पड़ा। न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिस्वर सिंह की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने शुक्रवार को कहा कि अदालती आदेश का पालन करते हुए संबंधित पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा दे दिया गया है। अदालत के समक्ष पीड़ित व्यक्ति के अधिवक्ता ने उक्त मुआवजा राशि प्राप्त होने की पुष्टि की।
शीर्ष अदालत ने आरोपी व्यक्ति को जेल से रिहा करने में करीब एक माह की देरी के लिए 25 जून को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी और इसके लिए उसे पांच लाख रुपये का मुआवजा संबंधित पीड़ित व्यक्ति को देने का आदेश दिया था। साथ ही, राज्य सरकार से इस संबंध में अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का भी आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने आरोपी को 29 अप्रैल को जमानत दे दी थी, लेकिन उसे गाजियाबाद जिला जेल से 24 जून को रिहा किया गया। इस तरह अदालती आदेश के बावजूद आरोपी की रिहाई में 28 दिनों की देरी हुई।
शीर्ष अदालत ने 29 अप्रैल को आरोपी को जमानत दी और उसके बाद 27 मई को गाजियाबाद की एक निचली अदालत की ओर से रिहाई संबंधी आदेश जारी किया गया था। शीर्ष अदालत को पिछले दिनों आरोपी व्यक्ति की रिहाई के बारे में सूचित किया गया तो उसने टिप्पणी की, “स्वतंत्रता संविधान के तहत गारंटीकृत एक बहुत मूल्यवान और कीमती अधिकार है। अदालत ने कहा कि व्यक्ति ने मामूली गैर-मुद्दे के चलते कम से कम 28 दिनों के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी थी।
आरोपी व्यक्ति पर तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना आदि) और उत्तर प्रदेश धर्म के गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 (गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था।