गुजरात दंगा: 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई की चुनौती पर सात अगस्त को अंतिम सुनवाई
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय गुजरात के 2002 दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की सजा में छूट देकर पिछले साल 15 अगस्त को रिहा करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सात अगस्त को अंतिम सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने सोमवार को सात अगस्त को अंतिम सुनवाई की तारीख मुकर्रर करते हुए संबंधित पक्षों को संक्षिप्त में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। तीन मार्च 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के 14 लोगों की हत्या के 11 दोषियों को निर्धारित उम्र कैद की सजा पूरी करने से पहले पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था। ये रिहाई राज्य सरकार की सजा माफी नीति के तहत कई थी।
सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी। वर्ष 2008 में बॉम्बे सत्र अदालत ने 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। शीर्ष अदालत ने इसी अप्रैल में सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि आप (गुजरात सरकार) सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, ठीक उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। दो सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से कहा था कि जब विचाराधीन अपराध ‘जघन्य’ और ‘भयानक’ था तो राज्य सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह अच्छी तरह सोच समझकर कोई फैसला करती।
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया था कि एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और कई लोग मारे गए थे। इस मामले की तुलना अदालत ने यह भी कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के मानक मामलों से नहीं की जा सकती है। बिलकिस बानो और सीपीएम की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली समेत अन्य ने दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।