सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन दिशानिर्देशों को संशोधित किया
नयी दिल्ली। सरकार ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पैदा हुई धान की पराली की स्थानीय स्थिति से अलग एक कुशल प्रबंधन को सक्षम करने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन दिशानिर्देशों को संशोधित किया है। संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार धान-पराली आपूर्ति श्रृंखला के लिए लाभार्थी/संग्रहकर्ता (किसान, ग्रामीण उद्यमी, किसानों की सहकारी समितियां, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और पंचायतें) और धान-पराली का उपयोग करने वाले उद्योगों के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत तकनीकी-वाणिज्यिक पायलट परियोजनाएं स्थापित की जाएंगी।
सरकार मशीनरी और उपकरणों की पूंजीगत लागत पर वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। आवश्यक कार्यशील पूंजी को या तो उद्योग और लाभार्थी द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया जा सकता है या लाभार्थी द्वारा कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ), नाबार्ड या वित्तीय संस्थानों से वित्तपोषण का उपयोग किया जा सकता है। एकत्रित धान-पराली के भंडारण के लिए भूमि की व्यवस्था और इसकी तैयारी लाभार्थी द्वारा की जाएगी, जिसे अंतिम उपयोगकर्ता उद्योग द्वारा निर्देशित किया जा सकता है।
उच्च एचपी वाले ट्रैक्टर, कटर, टेडर, मध्यम से बड़ी गांठ बांधने वाली मशीन, रेकर, लोडर, ग्रैबर्स और टेलीहैंडलर जैसी मशीनों और उपकरणों के लिए, परियोजना प्रस्ताव आधारित वित्तीय सहायता दी जाएगी, जो धान-पराली आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक होती हैं। राज्य सरकारें, परियोजना अनुमोदन समिति के माध्यम से इन परियोजनाओं को मंजूरी देंगी।
सरकार (केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से) परियोजना लागत की 65 फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, परियोजना को प्राथमिक प्रोत्साहन देने वाले के रूप में उद्योग 25 प्रतिशत का योगदान देगा और एकत्र किए गए फीडस्टॉक के प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में कार्य करेगा तथा किसान या किसानों का समूह या ग्रामीण उद्यमी या किसानों की सहकारी समितियां या किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) या पंचायतें; परियोजना की प्रत्यक्ष लाभार्थी होंगी और शेष 10 फीसदी का योगदान देंगी।